संतो भाई आई ग्यान की आँधी रे !"" पद के कलापक्ष की विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
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कबीरदास ने कहा है –
संतों भाई, आई ज्ञान की आंधी।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाणी, माया रहे न बाकी।
आंधी तो आंधी है। वह जब आती है तो सब कुछ उड़ा ले जाती है। ऊंचा-नीचा, अच्छा-बुरा, उजला-काला, रात-दिन, कुछ नहीं देखती। सामने तिनका हो या पूरा पेड़, वह उसे उड़ा ले जाने की कोशिश करती है। तिनके नाजुक भी होते हैं और हल्के भी। जिसमें अपना वजन नहीं होता वह हवाओं के सहारे ही उड़ते हैं। जमीन से जुड़ाव खत्म होने के बाद तिनकों की यही नियति होती है। यह उड़ान नहीं भटकाव है। मिट्टी में मिल जाने की प्रक्रिया है।
वृक्ष अपनी जड़ों को धरती में गहरे तक उतार देता है। धरती से यह रिश्ता ही उसे जीवनी शक्ति देता है। उसके अंदर प्राण का संचार करता है। उसे आंधी-तूफानों के सामने सीना तान कर खड़े होने का हौंसला देता है।
आंधी में ताकत है। वेग है। जो भी सामने आये उसे अपने साथ उड़ा ले जाने का जुनून है। सब कुछ तहस-नहस कर देने का माद्दा है।
कबीर ने आंधी के इस चरित्र को आध्यात्मिक रहस्यवाद में पिरोया है। माया के अंधेरे में ज्ञान का उजाला फैलाने की साधना भारत की ऋषि परम्परा में जीने वाले महापुरुष करते रहे हैं। ज्ञान की आंधी चला कर भ्रम की टाटी उड़ाने वाले को ही लोग गुरु मानते हैं। उनका अनुगमन करते हैं। मानते हैं कि वह गुरू ही उन्हें बेहतर जीवन का मार्ग दिखायेंगे। भ्रम दूर होगा, सत्य से साक्षात्कार होगा।
पश्चिम की दुनियां में ऐसे संतों का अब अकाल ही है, लेकिन भारत में आज भी सच्चा गुरु खोज लेना बहुत कठिन नहीं है। प्रोद्योगिकी के चलते इसमें और अधिक सुविधा हो गयी है। अब टेलीविजन पर देख कर ही लोग गुरु का चुनाव कर लेते हैं। गुरू भी इसी माध्यम से उनका मार्गदर्शन करते हैं।
लाखों लोग गत कुछ वर्षों से टीवी चैनलों पर देख कर गुरुदेव को अपना गुरू मान चुके थे। उनसे प्रेरणा लेकर वे सुबह-सुबह टीवी देख कर उनके द्वारा बतायी गयी यौगिक क्रियाओं को दोहरा कर अपनी स्थूल काया को कामचलाऊ बनाने में सफल रहे थे। योग के बीच में बाबा के वचन भी उन्हें आध्यात्मिक ऊंचाई और राष्ट्रीय चेतना में सराबोर कर रहे थे।