संतौं भाई आई ग्यान की आँधी' से कबीर का क्या तात्पर्य है ?
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संतों भाई आई ज्ञान की आंधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बांधी।।
हिति-चत की द्वै थूनी गिरानी, मोह बलींदातूटा।
त्रिस्ना छानि परी घर ऊपरि, कुबुधि का भांडा फूटा।।
जोग जुगति करि संतौ बांधी निरचू चुवै न पानी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जानी।।
आंधी पीछे जो जल बूढ़ा, प्रेम हरी जन भीना।
कहै कबीर भान के प्रकटे उदित भया तमखीना।।
तात्पर्य:
*ज्ञान और ज्ञान में बड़ा फर्क है। एक तो ज्ञान है पंडित का और एक ज्ञान है प्रज्ञावान का। इन दोनों का भेद साफ न हो जाए तो अज्ञान के पार उठना कठिन है। और भेद बारीक है। भेद बहुत सूक्ष्म और नाजुक है। दोनों एक जैसे दिखाई पड़ते हैं। जुड़वां भाई जैसे मालूम होते हैं, लेकिन दोनों न केवल भिन्न हैं, बल्कि विपरीत भी हैं। दोनों का गुणधर्म शत्रुता का है।*
*अज्ञान से भी ज्यादा दूरी प्रज्ञावान के ज्ञान की, पंडित के ज्ञान से है। एक बार अज्ञान के पार हो जाना आसान है, पंडित के ज्ञान के पार होना बहुत कठिन है।*
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