संत किसलिए शरीर धारण करते हैं?
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कबीर दास जी ने इसलिए कहा है कि आशा यानि असंख्य इच्छाएं और तृष्णा यानि विशेष कामना शरीर छूटने के बाद भी नहीं मरती है. इच्छाओं को पूरी करने की प्यास ही जीव को बार-बार शरीर धारण कराती है और उसे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त नहीं होने देती है.
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कबीर दास जी ने इसलिए कहा है कि आशा यानि असंख्य इच्छाएं और तृष्णा यानि विशेष कामना शरीर छूटने के बाद भी नहीं मरती है. इच्छाओं को पूरी करने की प्यास ही जीव को बार-बार शरीर धारण कराती है और उसे जीवन-मरण के बंधन से मुक्त नहीं होने देती है.
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