संत कबीर के बारे में 10 15 से वाक्य लिखिए तथा समाज परिवर्तन से संबंधित दोहा तथा अर्थ लिखिए पांच दोहे पेटी पद
Answers
Answer:
1) Kabir Das was great literature of 15th century India.
2) There is no enough information available about his date and place of birth.
3) According to some sources, he was born around the 14th-15th century in Varanasi city of India.
4) He was born into a Muslim family.
5) He adopted Hinduism after the influence of his teacher Guru Ramanand.
6) He worked as a weaver to earn his livelihood.
7) Dhania was Kabir’s wife.
8) Sadhukadi and Panchmel Khichdi were the languages of Kabir that he used in his literary works.
9) His most popular works are Sakhi, Sabad, and Ramaini.
10) He died in Magahar near Varanasi district where he had born
Explanation:
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Answer:
1 . माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।
2 .जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ : सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का।
3 . जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय
अर्थ : अगर हमारा मन शीतल है, तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।
4 . साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय
अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजारा चल जाए। मैं भी भूखा न रहूं और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।
5 . तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई.
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.
अर्थ : शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है। य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।
6 . माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर .
अर्थ : कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।
7 . जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही
अर्थ : जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया। ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।
8 . बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
अर्थ: खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।