संतान का भाता-पिता के प्रति कर्तव्य
के संदर्भ में अपने विचार आठ- इस
वाक्यों में लिखिर
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मात पिता गुरु प्रभ के बानी l बिनहि विचार कहिये शुभ जानी ll”
माता-पिता और गुरु की आज्ञा को हितकारी समझ कर उनकी पालना करनी चाहिए l ये सदैव हितकारी वचन बोलते हैं, आपकी भलाई के लिए बोलते हैं, इसलिए उनको देवता-तुल्य माना गया है l माता-पिता की परिक्रमा करने का भी विधान है l परिक्रमा आप समझते हैं? परिक्रमा का मतलब होता है – प्रदक्षिणा, पुण्य प्रदक्षिणा जिसे कहा जाता है l परिक्रमा हमारी हिंदू संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण अंग है l आपने अगर कभी देखा हो कि हम मंदिरों की पूजा करते हैं, यज्ञ की पूजा करते हैं और जिस स्थान पर किसी महापुरुष के चरण पड़े हैं यानी गंगा जैसे स्थान की हम परिक्रमा करते हैं l उस स्थान को पवित्र जानकर उसकी परिक्रमा की जाती है l अधिकतर मंदिरों के बाहर परिक्रमा का एक पथ बना होता है, रास्ता बना होता है, इसलिए इसे ”प्रदक्षिणा” कहा जाता है l माता-पिता की प्रदक्षिणा को बहुत उत्तम गिना जाता है l जब उनके चारों तरफ परिक्रमा की जाती है, उनके चरणों का स्पर्श भी किया जाता है l माता-पिता के चरणों का स्पर्श करने से या बड़े-बुजुर्गों के चरणों का स्पर्श करने से “बल, बुद्धि, विद्या और आयु” मिलते हैं l बल यानि पावर या शक्ति, बुद्धि यानि इन्टेलेक्ट विद्या मतलब पढ़ाई, आयु मतलब उम्र. ये चारों चीज़ें माता-पिता के चरणों को स्पर्श करते ही सहज में ही प्राप्त हो जाती हैं lवर्तमान समय के पुत्र माता-पिता की कैसी सेवा करने वाले और कैसे भक्त हैं, यह तो प्रत्येक विवेकी व्यक्ति समझ सकता है। शास्त्रों का तो कथन है कि ‘संसार में बसने वाली आत्मा यदि क्षुद्र स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने माता-पिता की अवज्ञा करे तो उसके समान कोई दुष्ट नहीं है।’