संतान का पालन माँ बाप का नैतिक करीब है। वे किसी पर एहस्यान नहीं करते,
कंवल राष्ट्र का ऋण चुकाते हैं। वे मण मुक्त हो, यही उसका परितोष है। इससे
अधिक मोह है इसलिए पाप है। प्रस्तुत कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए
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संतान का पालन करना
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माता-पिता और संतान के संबंध में ‘उसने’ का विचार है कि संतान का पालन करना माता-पिता का नैतिक कर्त्त्व्य है। वे किसी पर एहसान नहीं करते, केवल राष्ट्र का ऋण चुकाते हैं। वे ऋण-मुक्त हों, यही उनका परितोष है। इसी से उन्हें प्रसन्न होनी चाहिए। इससे अधिक मोह है, इसीलिए पाप है।
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