संत पीपा के जीवन यात्रा का वर्णन कीजिये
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पीपाजी (१४वीं-१५वीं शताब्दी) गागरोन के शाक्त राजा एवं सन्त कवि थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं।
संत पीपा गागरोन के शाक्त राजा एवं सन्त कवि थे |
भक्तराज पीपाजी का जन्म राजस्थान में कोटा से दूर पूर्व दिशा में गागरोन में हुआ था। वे चौहान गौत्र की खींची वंश शाखा के प्रतापी राजा थे । उनके बचपन का नाम प्रतापराव खींची था। उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की ओर भी थी, जिसका प्रभाव उनके साहित्य में साफ-साफ दिखाई पड़ता है। किवदंतियों के अनुसार वह अपनी कुलदेवी से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते थे व उनसे बात भी किया करते थे।
पिता के देहांत के बाद उनका गागरोन के राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ। उन्होने अल्प राज्यकाल में पीपाराव जी द्वारा फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे योद्धाओं को पराजित कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया | प्रजाप्रियता व नीतिकुशलता के कारण आज भी आपको गागरोन व मालवा के सबसे प्रिय राजा के रूप में मान सम्मान दिया जाता है।
गुरु नानक देव जी ने उनकी रचना उनके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में जगह दी।
पीपानन्दाचार्य जी का संपुर्ण जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है। राजकाल में देवीय साक्षात्कार करने का चमत्कार प्रमुख है | सिंह को अहिंसा का उपदेश देना, लाठियों को हरे बांस में बदलना, एक ही समय में पांच विभिन्न स्थानों पर उपस्थित होना, मृत तेली को जीवनदान देना, सीता जी का सिंहनी के रूप में आना आदि कई चमत्कार जनश्रुतियों में प्रचलित हैं।