स्टोरी ऑन वाह पुराना पेड़
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एक दिन दूर कहीं जंगल में धुँआ उठता दिखाई दिया फिर आग की लपटें दिखाई दी, डर के मारे हम सभी का बुरा हाल हुआ जा रहा था। देखते-देखते आग हमारे निकट पहुँच गई थी। तेज हवा चल रही थी, मानो उसको हम पर तरस आ रहा था और वह आग को बुझाना चाहती थी पर हवा से क्या आग बुझती है? वह और तेज हो गई। इतने में इन्द्र देव की कृपा हुई और बादल बरस पड़े। आग मुझ तक पहुँचती कि वह बुझ गई। और मैं मौत के मुँह से बच गया। किन्तु इस बार भी बहुत सारे पेड़-पौधे जले। मानो जंगल में महामारी फैल गई हो। छोटे पेड़-पौधे तो लगभग सभी जल गये थे। कुछ बड़े पेड़ बच गये थे वो भी बुरी तरह झुलस गये थे। जैसे-तैसे जंगल अग्निदाह से उबर पाया, वर्षा से उनमें नई जान आ गई। कुछ दिनों बाद जंगल हरा-भरा दिखने लगा।
धीरे-धीरे हवा, नमी ऊष्मा मिली तो वह अंकुरित हुआ। छोटी-छोटी कोमल-कोमल दो पंखुड़ियाँ उग आई उस पर, जो पौधा कहलाया। वो पौधा और कोई नहीं मेरे ही बचपन का नाम है। मेरी माँ धरती है और मेरा पिता आसमान है। जब से मैंने जन्म लिया मेरी माँ और पिता ने मुझे बड़े लाड़ और प्यार से पाला कभी कोई कमी नहीं होने दी। धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ। मुझे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ।
एक दिन सूर्य उदय हो रहा था सभी पेड़ ओस की बूँदों के रूप में मोती बिखेर रहे थे। मंद-मंद हवा के झोंकों से डाली-डाली प्रसन्न थी। गुन-गुनी धूप का सभी आनन्द ले रहे थे। तभी एक आदमी हाथ में दराँती लिये दिखाई दिया, हम सभी सहमें डरे उसे देखते रहे। देखते-देखते उसने कई छोटे-छोटे पेड़ और बड़े पेड़ों की टहनियों को बड़ी निर्दयता से काट डाला और उनका गट्ठर बनाकर अपने घर को चल दिया। कटे छोटे पेड़ ऐसे लग रहे थे जैसे उनकी गर्दन कट गई हो और टहनियाँ कटे पेड़ ऐसे लग रहे थे मानो उनके हाथ-पाँव कट गये हों, वे रो रहे हों, उनकी आँखों से मानो आँसू टपक रहे थे। बड़े दिनों बाद उनके जख्म भरे और उन पर नई कोपलें आई और वे स्वस्थ हो गये। मनुष्य के इस कृत्य को देखकर मुझे बड़ी हैरानी हुई।कुछ दिन फिर ठीक-ठाक चला। एक दिन दूर कहीं जंगल में धुआँ उठता दिखाई दिया, फिर आग की लपटें दिखाई दी, डर के मारे हम सभी का बुरा हाल हुआ जा रहा था। देखते-देखते आग हमारे निकट पहुँच गई थी। तेज हवा चल रही थी, मानो उसको हम पर तरस आ रहा था और वह आग को बुझाना चाहती थी पर हवा से क्या आग बुझती है? वह और तेज हो गई। इतने में इन्द्र देव की कृपा हुई और बादल बरस पड़े। आग मुझ तक पहुँचती कि वह बुझ गई।
हम आग के उस दिल दहलाने वाले दृश्य को भूल भी नहीं पाये थे कि एक दिन पाँच-सात महिलाएँ जंगल में आई और उन्होंने बहुत सारे पेड़ों की टहनियाँ काट डाली और रस्सियों में बाँधकर घर ले गये। तब भी कुदरत ने मुझे बचा लिया। उन कातिलों की नजर शायद मुझ पर नहीं पड़ी नहीं तो वे मुझे भी अधमरा कर देते। उन्होंने बड़े-बड़े पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाई और उन्हें धराशाई कर डाला। उनकी टहनियाँ काटी और तनों को फाड़कर वहीं ढेर लगाकर घर को चल दिये। सारे जंगल में मातम छा गया। किसी तरह पक्षियों के मुँह से गिरे बीज धरती पर अंकुरित हुए और उन्होंने कटे पेड़ों का स्थान लिया तो जंगल गहरे दुख से उबर पाया।
जिस जंगल में मैं रहता था वह भी धीरे-धीरे वीरान होने लगा। तभी एक दिन भयंकर बारिश हुई और जंगल का ऊपरी हिस्सा धँस कर पानी में मिलकर बड़े वेग से सभी पेड़-पौधों को लीलता हुआ खेतों को बहाता हुआ ज्यों ही गाँव के निकट पहुँचा तो गाँव में अफरा-तफरी मच गई। चारों ओर बचाओ-बचाओ की आवाज सुनाई दे रही थी जो क्षण भर में बंद हो गई थी। शायद ईश्वर ने उन्हें करनी की सजा दे दी थी। सारा गाँव पल भर में तबाह हो गया था। बच्चे-बूढ़े, गाय-भैंसे, कुत्ते-बिल्ली सभी काल के गाल में समा गये थे। तब क्या हुआ मैं नहीं जानता, शायद तब तक मेरी साँसें भी उखड़ चुकी थी।
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