सूत्र पुत्र एकत्रीकरण शेषनाथ अपनाएं
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❥सूत-पुत्र’ नाटक के लेखक डॉ० गंगासहाय प्रेमी हैं। इस नाटक के कथासूत्र ‘महाभारत’ से लिये गये हैं। परशुराम जी उत्तराखण्ड के आश्रम में निवास करते हैं। उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि वह केवल ब्राह्मणों को ही धनुष चलाना सिखाएँगे, क्षत्रियों को नहीं। ‘कर्ण’ एक महान् धनुर्धर बनना चाहते हैं; अतः वे स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम जी से धनुर्विद्या सीखने लगते हैं। एक दिन परशुराम जी, कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सोये हुए होते हैं कि एक कीड़ा कर्ण की जंघा पर कोटने लगता है, जिससे रक्तस्राव होने लगता है। रक्तस्राव होने पर भी ‘कर्ण’ दर्द सहन कर जाते हैं। कर्ण की सहनशीलता को देखकर परशुराम जी को उसके क्षत्रिय होने का सन्देह होता है। पूछने पर कर्ण उन्हें सत्य बता देते हैं। परशुराम जी क्रुद्ध होकर शाप देते हैं कि अन्त समय में तुम हमारे द्वारा सिखाई गयी विद्या को भूल जाओगे। कर्ण वहाँ से वापस चले आते हैं।