४)स्त्री-शक्षा के महत्त्व को ८-१० वाक्यों में अपने
शब्दों में मलझखए।
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एक सभ्य समाज का निर्माण उस देश के शिक्षित नागरिको द्वारा होता है और नारी इस कड़ी का एक अहम् हिस्सा है। परिवार की छोटी छोटी इकाइयां मिलकर एक समाज का गठन करती हैं और परिवार की केंद्र बिंदु नारी होती है, यदि एक नारी शिक्षित होती है तो एक परिवार शिक्षित होता है और जब एक परिवार शिक्षित होता है तो पूरा राष्ट्र शिक्षित होता है।
एक महान विचारक रूसो ने कहा है,”यदि आप मुझे सौ आदर्श माताएं दे तो मैं आप को एक आदर्श राष्ट्र दूंगा “
परिवार में शिशु की पहली अध्यापिका या गुरु माँ होती है और जो प्रारंभिक शिक्षा शिशु अपने घर में ग्रहण करता है वो उसे दुनिया के किसी विद्यालय में प्राप्त नहीं हो सकती अतः मनुष्य के सर्वांगीण
विकास के लिए उसे शिक्षित होना आवश्यक है और जब बात नारी की आती है तो ये नितान्त आवश्यक हो जाती है।
संस्कृत में एक श्लोक है,”अथ शिक्षा प्रवश्यम:मातृमान पित्रमानाचार्यवान पुरुषो वेद:”
अर्थात् जब् तीन उत्तम शिक्षक एक माता, दुसरा पिता, और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। यदि हम वर्तमान परिस्थिति कि चर्चा करे तो अब नारी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुकी है, शिक्षित नारी आजकल के सभी क्षेत्रों में पदार्पण कर चुकी है, वह एक महान नेता, समाजसेविका, चिकित्षक, निदेशक, वकील आदि महान पदों पर कुशलता पूर्वक कार्य करके अपनी
अद्वितीय क्षमता को दिखा रही है।
भारत सरकार भी अनेक ऐसी योजनाए ले कर आयी है जो नारी को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं जैसे बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ योजना, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना, राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना इत्यादि। ऐसा कहा जाता है की महिलाएं कुशल प्रसाशक होती है, भारत जिसे एक पुरुष प्रधान देश की संज्ञा दी जाती है उस देश का प्रतिनिधित्व यदि एक महिला करती है तो ये स्वयं में इस बात का प्रमाण है की शिक्षा एक ऐसा शस्त्र है जो नारी को इस काबिल बना देता है को वो किसी देश का प्रतिनिधित्व कर सके।
अभी हाल में भारत में हुए चंद्रयान-२ के प्रक्षेपण के लिए बनायीं गयी टीम का नेतृत्व महिलाओं ने किया था, ये सिर्फ इसलिए संभव हो पाया क्योकि उन्होंने सम्बंधित क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। एक नारी जीवनपर्यन्त बेटी, बहन, पत्नी एवं माँ जैसी किरदारों का निर्वाह करती है और इनका निर्वाह करते हुए जो कठनाईया आती हैं उनका सामना करने का आत्मबल उन्हे शिक्षा प्रदान करती है। शिक्षा नारी को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होती है और उसमे स्वालम्बन के गुणों का भी विकास करती है।
स्त्री हि ब्रह्म बभूविथ (ऋग्वेद )|
अर्थात् नारी स्वयं विदुषी होते हुए अपनी सन्ता को सुशिक्षित बनाती है।
स्वामी दयानन्द के अनुसार,”एक पुरुष के शिक्षित और सुसंस्कृत होने का अर्थ है अकेले उसी का उपयोगी बनना किन्तु एक स्त्री यदि शिक्षित, समझ्दार् और सुयोग्य है तो समझना चाहिये कि पुरे परिवार के सुसंस्कृत बनने का सृदृण आधार बन गया” .
जहाँ शिक्षा का आभाव रहेगा वहां अज्ञान का अँधेरा छाया रहना स्वाभाविक है। देश में, विश्व में मानव रत्नो का उत्पादन बड़े यही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसकी पूर्ति सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत नारी के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। किसी देश की नागरिक होने के नाते शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक स्त्री का मूल अधिकार है और जो देश की प्रगति, उन्नति एवं विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।