Hindi, asked by bishtdeepak168, 3 months ago

सीता स्वयंवर के प्रतांत को अपने शब्दों में लिखिए​

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Answered by nishakankarwal51
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Explanation:

महाराज जनक का प्रवेश होता है। वे विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और दोनों सुकुमारों का परिचय पूछते हैं। विश्वामित्र दोनों का परिचय देते हुए कहते हैं कि- दोनों हैं पुत्र अवध नृप के, है नाम राम, लक्ष्मण इनका। यह बली गुणी उत्साही हैं, किस विधि से हो वर्णन इनका...। राजा जनक दोनों राजकुमारों को धनुष महोत्सव में लाने का निवेदन ऋषि विश्वामित्र से करते हैं।

अगले दृश्य में राम-लक्ष्मण नगर भ्रमण की इच्छा से निकलते हैं। जनकपुर के नर-नारि दोनों की छवि देखकर हर्षित हो जाते हैं। अंत में श्रीराम ऋषि विश्वामित्र की पूजा के लिए फूल लाने के लिए पुष्पवाटिका पहुंचते हैं। तभी वाटिका में स्थित माता पार्वती के मंदिर में पूजा के लिए सीता जी सखियों संग पहुंचती हैं। सखियां राम-लक्ष्मण को देखकर निहाल हो जाती हैं।

इस बीच सखियां सीता जी को लेकर आती हैं। सीता जी और राम जी की दृष्टि मिलती है, सखियां गाती हैं राम रघुराई की झरोखे झांकी की जैैैरी...। उधर राम कहते हैं कि हे लक्ष्मण बड़ा अचंभा है, सारा उपवन झंकार उठा। छा गई सरसता, कमलों में भ्रमरों का दल गुंजार उठा...। राम लक्ष्मण से कहते हैं कदाचित यह वही जनक जी की कन्या हैं जिनके लिए धनुष महोत्सव की रचना की गई है।

अगले दृृश्य में उद्घोषक सीता स्वयंवर के लिए नगर वासियों को सूचना दे रहा है। एक दूसरे दृश्य में धनुष महोत्सव के लिए दरबार सजा है। राजा जनक विराजमान हैं। फिर एक-एक कर सभी राजाओं को धनुष भंग के लिए आमंत्रित किया जाता है। स्वयंवर में रावण व बाणासुर भी पहुंचे हैं। इस बीच सीता जी सखियों संग प्रवेश करती हैं।

सभी राजा बारी-बारी आते हैं मगर धनुष को हिला भी नहीं पाते और असमर्थता में बैठ जाते हैं। सारे राजा एकसाथ मिलकर धनुष को हिलाने की कोशिश करते हैं लेकिन विफल होते हैं। तब राजा जनक दुखी होकर कहते हैं- हे द्वीप-द्वीप के राजागण हम किस कहें बलशाली हैं। हमको तो ये विश्वास हुआ पृथ्वी वीरों से खाली है...। अगले दृश्य में लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं, राम उन्हें शांत कराते हैं।

फिर गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम उठते हैं। श्रीराम जी धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हैं तो वह भयंकर आवाज से टूट जाता है। चारों ओर खुशियां छा जाती हैं। माता सीता प्रभु श्रीराम के गले में वरमाला डालती हैं। बधाई गीत व नृत्य गीत के दृश्यों के बीच सीता स्वयंवर के मंचन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। इससे पूर्व तीसरे दिवस की रामलीला की शुरूआत अहिल्या उद्धार प्रसंग से होती है।

रामलीला के ही क्रम में परशुराम-लक्ष्मण संवाद की लीला भी अत्यंत आकर्षक रही। धनुष भंग के बाद परशुराम क्रोधित अवस्था में प्रवेश करते हैं। परशुराम की दृष्टि टूटे हुए धनुष पर पड़ती है तो वह चौंकते हैं। जनक पर क्रोधित होकर कहते हैं- ओ मूर्ख जनक जल्द बतला यह धनवा किसने तोड़ा है...। चारों ओर मौन छा जाता है। तब श्रीराम अपने स्थान से उठते हैं और कहते हैं शिव धनुष तोड़ने वाला भी कोई शिव प्यारा ही होगा। जिसने ऐसा अपराध किया वो दास तुम्हारा ही होगा..। इसके बाद परशुराम व लक्ष्मण का संवाद शुरू होता है जो दर्शकों का मन मोह लेता है।

रामलीला के चौथे दिन मंगलवार को चारों भाइयों के विवाह की लीला और कैकेयी कोप भवन सहित रामवनगमन की लीला का मंचन किया जाएगा।

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