संतोष और सच्चाई का इनाम निबंध
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आज अपनी कक्षा के बच्चों से हमनें एक सवाल किया कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण धन क्या है? तपाक से एक बच्चें ने बोला बाप बड़ा न भैया सब से बड़ा रुपैया। बच्चे की बात सुनकर सभी हँसने लगे। फिर मैंने सबको एक संछिप्त कहानी के माध्यम से समझाया कि “संतोष ही सच्चा धन” हैं। बच्चों को मेरी कहानी बहुत पसंद आयी और आशा करती हूँ कि “संतोष ही सच्चा धन” की यह कहानी आपके द्वारा भी अवश्य सराही जायेगी।एक धन – सम्पन्न व्यक्ति थे। उसने अपनी मेहनत से बहुत कुछ पा लिया था, पर उसकी ख्वाहिश इतनी बढ़ चुकी थी, कि उसे पूरा करने के लिए अधिक धन जुटाने की इच्छा करने लगा। पर व्यक्ति की सभी इच्छाएं कहां कभी पूरी होती हैं। एक इच्छा की पूरी होने के बाद दूसरी इच्छा का जन्म लेना प्रकृति का शास्वत नियम है। लेकिन यह बातें उस धन – सम्पन्न व्यक्ति को समझ में नहीं आ रही थी।
उस व्यवसायी की मेहनत और ख्वाहिश पूरी करने की चाहत लगातार बढ़ती जा रहीं थी। उम्र और ताकत भी उसका साथ नहीं दे रही थी। परिणाम यह हुआ कि वह बहुत बीमार पड़ गया। बीमार हुए व्यवसायी का इलाज करने के लिए बड़े – बड़े डॉक्टरों को बुलाया गया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।उसके बिगड़ते हुए हालत को देखते हुए उसकी पत्नी ने वहीं के एक सबसे प्रसिद्ध वैद्य महाराज जी को अपने पति के इलाज के लिए बुलावा भेजा। संदेशा पाकर वह उस व्यवसायी को देखने पहुँचे। वहां पहुँचने पर उन्हें पता चला कि व्यवसायी लगातार मेहनत से और अधिक बड़ा बनने की चिंता के कारण बीमार हुआ है।
वैद्य जी ने कहा तुम्हारा मन तो इच्छाओं से भरा पड़ा है। यह तभी ठीक होगा जब तुम चित्त शांत रखोगे और चित्त शांत करने के लिए संतोष रूपी धन को अपने भीतर फूलने फलने दो। संतोष परम शक्ति के सदृश है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। यदि तुम्हारे अन्दर संतोष रूपी धन रहेगा, तो तुम अल्पधनी होने के बाद भी सुखी रह सकते हो। अन्यथा धन की सम्पन्नता होते हुए मन का सुख और चैन गायब हो जायेगा।इसलिए जीवन में धन की नहीं, बल्कि जीवन धन की चिंता करों। अपने जीवन के निर्वाह के लिए जितना धन आवश्यक है उसे संग्रह करो पर उसके प्रति अधिक आसक्ति मत रखो। कुछ दिन बाद व्यवसायी ठीक हो गया क्योंकि अब उसको आत्मसंतुष्टि का धन मिल चुका था।
कहानी से शिक्षा –
संतोष सबसे बड़ा धन है कहानी से हमें शिक्षा मिलती हैं कि जितना है उसमे सन्तुष्ठ रहो। आपके पास जो भी है पहले उसमे आप आनंद का अनुभव करें। मन से प्रसन्न रहें। और जो फालतू की इच्छाएँ हैं उनको अपने ऊपर हावी न होने दे।