Hindi, asked by sejalgami142, 2 months ago

संतोष से बढकर कोइ और संपत्ति नहीं इस संदर्भ मे आठ से दस वाकय लिखिए। ​

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Answered by dholpuriyalalita
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Answer:

संतोष ही सबसे बड़ा धन है और संतोष के अभाव में बड़े-बड़े धनपति भी दुखी रहते हैं। यह बातें झुमरीतिलैया के पानी टंकी रोड स्थित श्री दिगंबर जैन नए मंदिर में जैन मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज ने बुधवार को अपने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि धन के अभाव में भी व्यक्ति के मन में यदि संतोष है तो वह सुखी रह सकता है, क्योंकि संतोष ही सबसे बड़ा धन है।

मुनिश्री ने कहा कि गरीब की अपेक्षा अमीरों की चाह अधिक होती है। गरीब हमेशा 100-200 रुपये की चाह रखता है और अमीर सदैव लाख-दो लाख की बात करता है। धन की संपन्नता से मन की चाह भी बढ़ जाती है। लेकिन धन संपदा से महत्वपूर्ण जीवन है। उन्होंने कहा कि जीवन में धन की नहीं, बल्कि जीवन धन की चिंता करो। संपत्ति किसी के साथ नहीं जाती। जड़ धन तभी तक उपयोगी है जब तक जीवन है। जीवन निर्वाह के लिए धन कुछ उपयोगी हो सकता है उसके लिए धर्नाजन करना बुरा नहीं है, पर पूरा जीवन ही धन के लिए समर्पित कर देना कौन सी बुद्धिमानी है। मुनि श्री ने कहा कि सारी जिंदगी धन बटोरते पर अंत में सब कुछ छोड़कर जाना पड़ता है। जिसे छोड़कर जाना है उसके पीछे अपनी कीमती श्वासें खपा देना नादानी है। अपने जीवन के निर्वाह के लिए जितना धन आवश्यक है उसे संग्रह करो पर उसके प्रति अधिक आसक्ति मत रखे।

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