स्तुति - वन्दना
(1) तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर।। टेक ॥ हम चितवाँ थें चितवो णा हरि, हिवड़ो बड़ो कठोर । म्हारी आसा चितवनि थारी ओर णा दूजा दौर। उभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ हूँ करता करताँ भोर। मीराँ रे प्रभु हरि अबिनासी देस्यूँ प्राण अँकोर ।।
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आपका प्रश्न मुझे समझ में नही आ या इसे अच्छे से डालिया ताकि हम समझ सके
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