संदेह कहनी का सार्थकथा
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संदेह कहानी जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखी गयी गयी है . जिसमें उन्होंने विभिन्न प्रकार की परिस्थिति किस प्रकार मनुष्य के मन में भ्रम एवं संदेह उत्पन्न करके उसे विचलित कर देती हैं . रामनिहाल एक पढ़ा -लिखा युवक है जो नौकरी की तलाश में श्यामा के घर आकर किराये पर रहने लगता है .वह वहीँ ,उसी शहर में काम करते हुए अपना भविष्य बनाना चाहता हैं . श्यामा ,उस मकान की मालकिन है ,जो एक विधवा का जीवन व्यतीत कर रही हैं . रामनिहाल को श्यामा से एकतरफा प्यार हो जाता है ,जबकि श्यामा अपनी पूरी निष्ठा,पतिव्रता और तत्परता के साथ ,रामनिहाल को अपना एक मित्र मानती है .इसी बाच रामनिहाल के साथ काम कर रहे परिचित ब्रजमोहन के घर मेहमान के रूप मोहन और मरोमा का आगमन होता है .समयाभाव के कारण ब्रजमोहन ,रामनिहाल से अपने मेहमानों के रूप बनारस के घाटों के भ्रमण करवाने की जिम्मदारी देता है . रामनिहाल ,मोहन और मरोरमा को घाटों के भ्रमण के लिए साथ में ले जाता है ,जिसमें दौरान रामनिहाल मनोरमा के करीब आता है .इसी क्रम में मनोरमा उसे अपने पारिवारिक क्लेश के बारे में जानकारी देती है और मदद की गुहार लगाती है .भ्रमण करने के दौरान मोहन अपनी पत्नी पर संदेह व्यक्त करते हुए उसे चरित्रहीन बताने का प्रयास और मनोरमा को रामनिहाल की सहानुभूति मिलती है . मनोरमा ने धीरे से रामनिहाल अपनी विपत्ति में सहायता करने करने के लिए कहा तथा बाद में कई पत्र लिखकर उससे सहायता के लिए पटना आने का आग्रह किया .
श्यामा का घर छोड़कर कर जाने का उसे बहुत दुःख है इसीलिए उसकी आखों से धाराप्रवाह आँसू बह रहे है .वह श्यामा को अपनी भावनाओं की सच्चाई तो नहीं बताना चाहा परन्तु श्यामा उसके हाथ से चित्र खींच कर देख लेती है और उसके एकतरफा प्यार के बारे में समझ भी जाती है .इसी प्रकार उसकी मूर्खता पर हँसती है और उसे समझाती है वह जाकर मनोरमा की मदद करे और फिर वापस आ जाए .इसी प्रकार कहानी का अंत होता है .
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Jnab sarthak hai
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