Hindi, asked by seetaram9492, 1 year ago

संदेह और भ्रंतिमान अलंकार में अंतर में क्या अंतर है​

Answers

Answered by akifjameel180
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Answer:

भ्रांतिमान अलंकार-

जहाँ प्रस्तुत को देखकर किसी विशेष साम्यता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है। उदाहरण-

1. चंद के भरम होत मोड़ है कुमुदनी।

2. नाक का मोती अधर की कान्ति से,

बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,

देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,

सोचता है, अन्य शुक कौन है।

3. चाहत चकोर सूर ऒर , दृग छोर करि।

चकवा की छाती तजि धीर धसकति है।

4. बादल काले- काले केशों को देखा निराले।

नाचा करते हैं हरदम पालतू मोर मतवाले।।

5. पाँव महावर दें को नाइन बैठी आय।

पुनि-पुनि जानि महावरी एड़ी भीजत जाय।।

Answered by jayathakur3939
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अलंकार शब्द की परिभाषा :-

दो शब्दों के योग से मिलकर बना है- 'अलम्' एवं 'कार' , जिसका अर्थ है- आभूषण या विभूषित करने वाला। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं। दूसरे शब्दों में जिन उपकरणों या शैलियों से काव्य की सुंदरता बढ़ती है, उसे अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार नारी की सुन्दरता आभूषण से बढ़ जाती है , उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है।  

संदेह अलंकार  :– जहाँ दो वस्तुओं या क्रियाओं में इतनी समानता हो कि उसमें अनेक वस्तुओं के होने का संदेह हो और यह संदेह अंत तक बना रहे तो वहाँ संदेहालंकार होता है | इसमें या , अथवा ,किधौ ,किंवा, कि आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है | जैसे -  

‘हरि -मुख यह आली ! किधौ, कैधौ उयो मयंक ?

हे सखी ! यह हरि का मुख है या चन्द्रमा उगा है ? यहाँ हरि के मुख को देखकर सखी को निश्चय नहीं होता कि यह हरि का मुख है या चन्द्रमा है |

भ्रंतिमान अलंकार : -  

    जहाँ प्रस्तुत को देखकर किसी विशेष साम्यता के कारण किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।

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