साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना।
साथी हाथ बढ़ाना।
हम मेहनतवालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया
फ़ौलादी हैं सीने अपने, फ़ौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों में पैदा कर दें राहें
साथी हाथ बढ़ाना।
मेहनत अपने लेख की रेखा, मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की. आज अपनी खातिर करना.
अपना दुख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंजिल, अपना रस्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना।
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can you give me the reason why you write this but it is amazing
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good poem. I like it. keep going like this
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