स्थाई भाव किसे कहते हैं रस में
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अभिप्राय यह है कि जब पर्याप्त विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी अथवा संचारी भावों के संयोग से मानव-हृदय में सुषुप्त कोई (रति, उत्साह आदि) स्थायी-भाव जाग्रत होकर पुष्ट अवस्था को प्राप्त हो जाता है, तब उस व्यक्ति को 'रस' की अनुभूति होती है।
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रस का स्थायी भाव : Ras and Sthayi Bhav
सात्विक भाव: आश्रय की शरीर से उसके बिना किसी बाहरी प्रयत्न के स्वत: उत्पन्न होने वाली चेष्टाएँ सात्विक अनुभाव कहलाती है इसे 'अयत्नज भाव' भी कहते है.। सात्विक भाव 8 तरह के होते है। स्तम्भ, स्वेद, स्वरभंग, वेपथु (कम्पन), वैवर्ण्य, अश्रुपात, रोमांस व प्रलय ।
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