स्थाई भाव से आप क्या समझते हैं
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अभिप्राय यह है कि जब पर्याप्त विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी अथवा संचारी भावों के संयोग से मानव-हृदय में सुषुप्त कोई (रति, उत्साह आदि) स्थायी-भाव जाग्रत होकर पुष्ट अवस्था को प्राप्त हो जाता है, तब उस व्यक्ति को 'रस' की अनुभूति होती है।
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अभिप्राय यह है कि जब पर्याप्त विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी अथवा संचारी भावों के संयोग से मानव-हृदय में सुषुप्त कोई (रति, उत्साह आदि) स्थायी-भाव जाग्रत होकर पुष्ट अवस्था को प्राप्त हो जाता है, तब उस व्यक्ति को 'रस' की अनुभूति होती है
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