Hindi, asked by shauryapagal, 1 year ago

सादा जीवन उचच विचार पर अनुचछेद

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Answered by ravi597
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Answered by PrayagKumar
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सादा जीवन उच्च विचार , संतोष और सुख की खान है । सादा जीवन से ही हमारे अन्दर मानवीय तो का समावेश होता है । ऐसे जीवन और आचरण में जो आनन्द, सुख, संतोष, सरलता और पवित्रता है, वह कृत्रिम , ऐश्वर्यशाली और उलझन भरे जीवन में कहां । 

लोभ-लालच, मिथ्याचार, ईर्ष्या , द्वेष आदि सभी दुर्गण सादा जीवन के शत्रु हैं । हमारे संतों ने, धर्मग्रंन्थों ने, साहित्य ने हमेशा सादा जीवन अपनाने की शिक्षा दी है क्योंकि इसी में हमारा भला है । आज के जीवन में जो असंतोष, हड़बड़ी, मारामारी, व्यर्थ की भागदौड़, ईर्ष्या, तनाव, रोग, शोक आदि हैं, वे सब इस सादा जीवन के अभाव के कारण ही हैं ।

हमारी इच्छाओं और वासनाओं का कोई अंत नहीं हैं । ये ही हमारे दु:ख का मूल कारण हैं । इनके कारण ही आज हमारा जीवन इतना उलझनभय, व्यस्त , चिंतामय और दु:खी बना हुआ है । भौतिकता और भोगवाद ने हमारे जीवन में विष घोल दिया है; संग्रह की. अनियंत्रित प्रवृत्ति ने सबकुछ उलट-पुलट कर रख दिया है ।

इतनी सुविधाओं, उपकरणों और वैज्ञानिक प्रगति के होते हुए भी आज का मनुष्य कितना अशांत, दु:खी और असहनल असहनशील बन गया है । अपराध बढ़ रह हैं, भ्रष्टाचार फैल रहा है और सब जगह तनाव, निराशा और अशांति है । सुख वस्तुओं के संग्रह या उपकरणों से प्राप्त सुविधा में नहीं है ।

यह तो मन की अनमोल वस्तु है जो सच्चाई, सफाई और सादगी से ही मिल सकती है । हमारी अभिलाषाएं, आकांक्षाएं और आशाएं हमें दिनरात व्यर्थ के कार्यो में हमें व्यस्त रखती हैं, हमारा सुख-चैन और शांति छीन लेती हैं और अंत में हमें कहीं का नहीं रहने देतीं

आज हमारा खाना-पीना , रहना-सहना, व्यवहार, विचार आदि बहुत कृत्रिम और उलझन भरे हैं । उन में सादगी और आदर्शों का सर्वथा अभाव है । परिणाम में सर्वत्र मारामारी, हिंसा, अपराध और दुर्गणों का साम्राज्य है । अपने स्वार्थ में अंधा मानव आज दूर की नहीं सोच पाता । उसकी आँखों पर लोभ-लालच और दुराचार का ऐनक चढ़ा हुआ है । वह जैसे भी हो तुरंत धनवान बन जाता चाहता है । इसके लिए बुरे-से-बुरे मार्ग पर वह चलने को तैयार है । इसने जिस स्पर्धा को बढ़ावा दिया है वह सचमुच जानलेवा है ।

आज व्यक्ति अपने ऊपर पानी की तरह पैसा बहा रहा है, और इस पैसे का संग्रह करने के लिए वह बेईमानी, धोखाधड़ी, मिलावट, कालाबाजारी, हिंसा, हत्या आदि में लिप्त है । समाचार-पत्र ऐसे काले कारनामों की खबरों से रंगे पड़े हैं । लूट-खसोट और भागमभाग के इस घृणित वातावरण के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं ।

हमने सादा जीवन और उच्च विचार का मार्ग त्याग कर यह सर्वनाश का रास्ता अपना लिया है । हमने गांधीजी को भुला दिया है, रामायण और महाभारत के उपदेशों को तिलाजंली दे दी है । सारांश में हम कह सकते हैं कि सादगी और सरलता ही सुख के मूल हैं । इसके विपरीत बनावट, दिखावा और उलझनें दु:ख के मूल है । सादा जीवन जीने से उसमें आदर्शों की स्थापना होती है, उच्च विचार आते हैं और व्यक्ति सुखी एवं संतुष्ट रहता है ।

अनावश्यक महत्वाकांक्षाओं के विस्तार से, धनसंग्रह से और आडम्बर से जीवन में कटुता आती है, वैमनस्य फैलता है और गरीब व अमीर के बीच की खाई गहरी होती जाती है । हमारे पूर्वज हमसे अधिक सुखी थे क्योंकि उनका जीवन सरल था, उनकी आवश्यकताएं न्यून थीं ।

उनके जीवन में आज जैसी सुविधाओं के आडंबर नहीं थे । शरीर से भी वे अधिक स्वस्थ थे क्योंकि विचारों और रहन-सहन का स्वास्थ्य से सीधा सबंध है । सरल व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अधिक स्वस्थ और सम्पन्न होता है ।

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