संथाल विद्रोह क्या था? समझाइए।
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अंग्रेजी शासन के विरुद्ध 1850 ई. के बाद होने वाले विद्रोहों में संथाल जनजाति का विद्रोह सबसे तीव्र एवं महत्वपूर्ण था। भागलपुर से राजमहल तक का क्षेत्र संथाल बाहुल्य क्षेत्र था। संथालों का विद्रोह मुख्य रूप से वीरभूम, बांकुरा, सिंहभूम, हजारीबाग, भागलपुर एवं मुंगेर तक फैला। इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजी उपनिवेशवादी शोषण की नीति थी। भूमिकर अधिक वसूला जाना, अंग्रेजी अदालतों से उचित न्याय न मिलना, पुलिस के अत्याचार एवं भ्रष्टाचार, महाजनों द्वारा शोषण किया जाना, उधार की समस्या आदि कारणों से संथालों में विद्रोह की भावना आई।
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वर्ष १८५५ में बंगाल के मुर्शिदाबाद तथा बिहार के भागलपुर जिलों में स्थानीय जमीनदार, महाजन और अंग्रेज कर्मचारियों के अन्याय अत्याचार के शिकार पहाड़िया जनता ने एकबद्ध होकर उनके विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँक दिया था। इसे पहाड़िया विद्रोह या पहाड़िया जगड़ा कहते हैं। पहाड़िया भाषा में 'जगड़ा शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'विद्रोह'। यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम सशस्त्र जनसंग्राम था। जावरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी , भाइयों ने नेतृत्व किया था शाम टुडू (परगना) के मार्गदर्शन में किया। 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा आरम्भ किए गए स्थाई बन्दोबस्त के कारण जनता के ऊपर बढ़े हुए अत्याचार इस विद्रोह का एक प्रमुख कारण था। सन १८५५ में अंग्रेज कैप्टन अलेक्ज़ेंडर ने विद्रोह का दामन कर दिया।