सुदामा चरित
71
कान, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
जानी जात॥
रुपनि गोपाल की, कछू न
काज।
कर ओड़त फिरे, तनक दही के
जो अब
हरि को राज-समाज।
वाही पठयो
ठेलि॥
काहिही समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि॥
॥
भयो.
। आवत नाहीं हुतौ,
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