सुूदास्य चिते भक्तिरसार्णव उदतिष्ठत् | ( प्रश्ननिर्माणं कुरूत ) 3rd word is underlined
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6.9।।तथा सुहृत् शब्दसे लेकर आधा श्लोक एक पद है। सुहृत् प्रत्युपकार न चाहकर उपकार करनेवाला मित्र प्रेमी अरि शत्रु उदासीन पक्षपातरहित मध्यस्थ जो परस्पर विरोध करनेवाले दोनोंका हितैषी हो द्वेष्य अपना अप्रिय और बन्धु अपना कुटुम्बी इन सबमें तथा शास्त्रानुसार चलनेवाले श्रेष्ठ पुरुषोंमें और निषिद्ध कर्म करनेवाले पापियोंमें भी जो समबुद्धिवाला है इन सबमें कौन कैसा क्या कर रहा है ऐसे विचारमें जिसकी बुद्धि नहीं लगती है वह श्रेष्ठ है। अर्थात् ऐसा योगी सब योगारूढ़ पुरुषोंमें उत्तम है। यहाँ विशिष्यते के स्थानमें विमुच्यते ( मुक्त हो जाता है ) ऐसा पाठान्तर भी है।
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