Hindi, asked by mdnaeemalam06, 2 months ago

सिद्धि ही हम पुराने जमाने के खोदे गए तालाबों और बावरियों पर ही निर्भर होने वाले हैं कैसे ?​

Answers

Answered by shelarravindra33
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Explanation:

यहां पचास हजार से अधिक कुएं हैं कोई सात सौ पुराने ताल-तलैया। केन, उर्मिल, लोहर, बन्ने, धसान, काठन, बाचारी, तारपेट जैसी नदियां हैं। इसके अलावा सैंकड़ों बरसाती नाले और अनगिनत प्राकृतिक झिर व झरने भी इस जिले में मौजूद हैं। इतनी पानीदार तस्वीर की हकीकत यह है कि जिला मुख्यालय में भी बारिश के दिनों में एक समय ही पानी आता है।

होली के बाद गांव-के-गांव पानी की कमी के कारण खाली होने लग जाते हैं। चैत तक तो जिले के सभी शहर-कस्बे पानी की एक-एक बूंद के लिए बिलखने लगते हैं। लोग सरकार को कोसते हैं लेकिन इस त्रासदी का ठीकरा केवल प्रशासन के सिर फोड़ना बेमानी होगा, इसका असली कसूरवार तो यहां के बाशिंदे हैं, जिन्होंने नलों से घर पर पानी आता देख अपने पुश्तैनी तालाबों में गाद भर दी थी, कुओं को बिसरा कर नलकूपों की ओर लपके थे और जंगलों को उजाड़ कर नदियों को उथला बना दिया था।

बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में पानी की किल्लत के लिए अब गरमी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। सरकारी योजनाएं खूब उम्मीदें दिखाती हैं लेकिन पानी की तरावट फाईलों से उबर नहीं पाती है।

गांव का नाम ही है - बनी तलैया। लौंडी ब्लाक के इस गांव के नाम से ही जाहिर होता है कि यहां एक तलैया जरूर होगी। यहां के रहवासियों के पुरखे, अपनी पानी की जरूरतों के लिए इसी तलैया पर निर्भर थे। सत्तर का दशक आते-आते आधुनिकता की ऐसी आंधी गांव तक बह आई कि लोगों को इस तालाब की सफाई करवाने की सुध ही नहीं रही। फिर किसी ने उसके पुराने बंधन को तोड़ डाला, लिहाजा साल भर लबालब रहने वाला तालाब बरसाती गड्ढा बन कर रह गया।

Answered by ruchi4044
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Answer:

are you a mental just go to the hell

itna bada kon likha h answer

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