सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मुझसे कह कर जाते
कह, तो क्या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?
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सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,
सखी, वे मुझसे कह कर जाते
कह, तो क्या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?
सन्दर्भ तथा प्रसंग – यह पंक्तियाँ काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक यशोधरा’ शीर्षक कविता से ली गई है | यह कविता कवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है | यशोधरा की पीड़ा के बारे में बताया गया है |
व्याख्या – हे यशोधरा , कहती है , जे सखी , मेरे पति तपस्या में सफलता पाने के लिए हमें अकेले छोड़ कर चले गए है | मुझे पता यह गौरव की बात उनका इस प्रकार बिना बताए जाना , मुझे अत्यन्त चोट पहुँचा रही है। यदि वह मुझे बता कर जाते तो मुझे इतना कष्ट नहीं होता है | यदि वह मुझे वह बता के जाते तो , तो क्या मैं उनको सिद्धि के लिए जाने से रोकती ? वह मुझे पूरी तरह मान नहीं पाए है |
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