सिद्धार्थ
1.
घूम रहा है कैसा चक्र।
वह नवनीत कहा जाता है, रह जाता है तक्र।
पिसो, पड़े हो इसमें जब तक,
क्या अन्तर आया है अब तक?
सहे अन्ततोगत्वा कब तक-
हम इसकी गति वक्र?
घूम रहा है कैसा चक्र!
Answers
घूम रहा है कैसा चक्र।
वह नवनीत कहा जाता है, रह जाता है तक्र।
पिसो, पड़े हो इसमें जब तक,
क्या अन्तर आया है अब तक?
सहे अन्ततोगत्वा कब तक-
हम इसकी गति वक्र?
घूम रहा है कैसा चक्र!
संदर्भ ► ये पंक्तियां मैथिली शरण द्वारा रचित काव्य से ली गयी हैं।
प्रसंग ► जब सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में अपने घर-परिवार का त्याग करके चले गये थे और ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया के दौरान उनका ये चिंतन प्रकट होता है, जिसमें उन्होंने इस जीवन रूपी चक्र से निर्वाण प्राप्त करने का चिंतन-मनन किया है।
भावार्थ ► अर्थात सिद्धार्थ कहते हैं कि समय का यह कैसा चक्र घूम रहा है। ये चक्र घूमता तो जा रहा है, लेकिन इससे निकलने वाला जो सार तत्व है वह कहाँ जा रहा है। यह मनुष्य निसार क्यों रह जा रहा है अर्थात जीवन रूपी इस चक्र के घूमने से जो सारतत्व रूपी मट्ठा प्राप्त होता है, उससे मनुष्य वंचित क्यों रह जा रहा है। हमेशा मनुष्य इस जीवन रूपी चक्र में पिसता ही रहता है। यह परिपाटी एक लंबे समय से चली आ रही है और इसमें कोई अंतर नहीं आया है। आखिर ऐसा कब तक चलेगा? कब मनुष्य को इस चक्र से मुक्ति मिलेगी। देवता भी इस आवागमन के चक्र से मुक्ति दे पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। ऐसा कौन सा देवता है जिसकी शरण में जाकर मुक्ति का मार्ग मिले।
गौतम बुद्ध यह भी सोच रहे हैं कि आखिर ऐसा कौन सा उपाय किया जाए कि संसार रूपी इस चक्र से मुक्ति मिले।
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