सादहत्य समाज कािपपण है | उसका संबंध व्यष्ष्ि से न होकर समष्ष्ि से है क्योंकक समाज में जो आचार-ववचार, वेशभषू ा, नीतत-मयापिा प्रचलन में होती है उसका प्रत्यक्ष प्रभाव सादहत्य पर अवश्य पड़ता है | चाहे वह ककसी भी काल का प्रतततनधधत्व
क्यों न करता हो | इस प्रकार सादहत्य सामाष्जक उन्नतत से भी प्रभाववत होता है
और सामाष्जक उन्नतत को प्रभाववत करने का सामर्थयप भी रखता है | ववद्वानों ने
इस संिभप में कहा है– “सादहत्य संगीत, कलाववहीनः साक्षात् पशु पच्ु छ ववषाण
हीनः |” वाल्तेयर ने सादहत्य को समाज का आिशप गरुु माना है | जो अपने मागिप शनप से प्रत्येक आयु वगप के व्यष्क्त को आिशप का मागप दिखलाता है | जब
तक सादहत्य में समाज का स्पंिन होता रहता है, वह अमर एवं सजीव सादहत्य कहलाता है | ककंतु ष्जस सादहत्य में अश्लीलता, काल्पतनकता एवं अव्यवहाररकता है,
वह सादहत्य समाज का सच्चा प्रतततनधधत्व नहीं करता है |
(क) वाल्तेयर ने सादहत्य को क्या माना है व क्यों ?
(ख) समाज की ककन बातों का प्रत्यक्ष प्रभाव सादहत्य पर पड़ता है ?
(ग) सादहत्य को समाज का िपणप क्यों कहा गया है ?
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वोल्टेयर 21 नवम्बर 1694 – 30 मई 1778) फ्रांस का बौद्धिक जागरण (Enlightenment) के युग का महान लेखक, नाटककार एवं दार्शनिक था। उसका वास्तविक नाम "फ़्रांस्वा-मैरी आहुए" (François-Marie Arouet) था। वह अपनी प्रत्युत्पन्नमति (wit), दार्शनिक भावना तथा नागरिक स्वतंत्रता (धर्म की स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार) के समर्थन के लिये भी विख्यात है
वोल्टेयर ने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उसने नाटक, कविता, उपन्यास, निबन्ध, ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक लेखन और बीस हजार से अधिक पत्र और पत्रक (pamphlet) लिखे।
यद्यपि उसके समय में फ्रांस में अभिव्यक्ति पर तरह-तरह की बंदिशे थीं फिर भी वह सामाजिक सुधारों के पक्ष में खुलकर बोलता था। अपनी रचनाओं के माध्यम से वह रोमन कैथोलिक चर्च के कठमुल्लापन एवं अन्य फ्रांसीसी संस्थाओं की खुलकर खिल्ली उड़ाता था।
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वोल्टेयर ने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उसने नाटक, कविता, उपन्यास, निबन्ध l