संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या करें |
माधव , कि कहब सुंदरी रुपे |
कतन रतन बिही आनी समारल देखल नयन सरूपे ||1||
पल्लवराज चरनजुग सोभित गति गजराजक भाने |
कनक कदलि पर सिंह समारल तापर मेरु – समाने ||2||
मेरु ऊपर एक कमल फुलाएल ताल बिना रूचि पाई |
मनिमय हार धार बहु सुरसरी तें नही कमल सुखाई ||3||
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Answer:
madhav kamchor tha sandarbh prasang vyakhya
b.a 1 year
माधव, कि कहब सुंदरी रुपे |
कतन रतन बिही आनी समारल देखल नयन सरूपे ||1||
पल्लवराज चरनजुग सोभित गति गजराजक भाने |
कनक कदलि पर सिंह समारल तापर मेरु – समाने ||2||
मेरु ऊपर एक कमल फुलाएल ताल बिना रूचि पाई |
मनिमय हार धार बहु सुरसरी तें नही कमल सुखाई ||3||
संदर्भ : यह काव्य पंक्तियां मैथिल कवि 'विद्यापति' द्वारा रचित की गई हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने राधा की कमनीय काया का वर्णन किया है।
अर्थ : कवि विद्यापति कहते हैं कि उसके दोनों चरण कमल के समान शोभायमान हो रहे हैं। उसकी चाल हथिनी के समान मदमस्त है। उसकी दोनों जंघायें सोने के केले के स्तंभ के समान दिखाई दे रही हैं। उनके ऊपर सिंह के समान पतली कमर है। पतली कमर के ऊपर सुमेरु पर्वत के समान उन्नत वक्ष स्थल सुशोभित हो रहे हैं। वक्ष स्थल पर उसके दोनों स्तन यूं लग रहे हैं, जैसे दो कमल खिले हुए हैं, जो बिना नाल के ही सुशोभित हो रहे हैं।
उसके वक्षस्थल पर मणियों की माला की लड़ियां ऐसी लग रही है, जैसे पर्वत से अनेक धाराएं के रूप में गंगा निकल रही हो। यह धाराएं कमल रूपी तालाब को सूखने से रोके हुए हैं। उसके दोनों होंठ बिंबा फल के समान लाल हैं और दाँतों की पंक्तियां अनार के दानों की तरह चमकदार दिखाई दे रही हैं।
उसका मुख चंद्रमा के समान है, जिस पर सिंदूर का टीका सूरज के समान शोभा बढ़ा रहा है। उसने अपने दोनों बाल बांध रखे हैं। उसकी आंखें उसकी आँखें हिरन के समान सुंदर हैं और उसकी आवाज कोयल के समान सुरीली है। उसके हाव-भाव कामदेव के बाणों से भी ज्यादा अचूक वार करते हैं। उसके कमल के समान ललाट और उन पर लहराती हुए लटें भौंरों के समान दिख रही हैं।