संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या
दीवारों पर वर्षा ने ऊबड़-खाबड़ चतेवरी अंकित कर दी थी दरवाज के साल
पर गौ-खुरों की रूदन-बूंदन से अटपटी वर्णमाला लिख रही
नाक-नक्शा ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे अतीत के प्रहार का
इतिहास में बदल गया हो।
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