Hindi, asked by gourang6843, 1 year ago

संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए राज्य में हाहाकार मचा हुआ था । प्रजा दिन - दहाड़े लूटी जाती थी । कोई फरियाद सुनने वाला न । । देहातों की सारी दौलत लखनऊ में विधा । थी और वह वेश्याओं में भी । और विलासिता के अन् ग की पूर्ति में उड़ जाती थी । अगेजी कपनी का लण दिन - दिन बढ़ता जाता था । कगती दिन - दिन भगकर भारी हो जाती थी । देश में सुपरथा न होने के कारण गार्षिक कर भी न वसूल होता । ३जीट बार - बार चेतावनी देता था , पर यहाँ तो लोग विलाशि के नशे में चूर में किसी के कानों पर न रेंगती थी ।

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Answered by shishir303
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ये पंक्तियां ‘मुंशी प्रेमचंद’ की कहानी “शतरंज के खिलाड़ी” से ली गईं हैं।

‘मुंशी प्रेमचंद’ हिंदी साहित्य जगत के अनमोल रत्न थे, इसमें कोई संदेह नही है।

कहानी की पृष्ठभूमि लखनऊ की है।

इस कहानी में ‘प्रेमचंद’ ने वाजिदअली शाह के समय के लखनऊ को चित्रित किया है। भोग-विलास में डूबा हुआ यह शहर राजनीतिक-सामाजिक चेतना से शून्य हो चुका था। पूरा समाज इस भोग-लिप्सा में लीन हो चुका था। इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं। मिरज़ा सज्जादअली और मीर रौशनअली। दोनों वाजिदअली शाह के जागीरदार हैं। जीवन की बुनियादी ज़रूरतों की उन्हे कोई चिंता नही है। दोनों गहरे मित्र हैं, और शतरंज खेलना उनका मुख्य शौक है। बस हर समय शतरंज की बाजियां चलती रहती हैं और खान-पान-नाश्ता-पानी, पान-तंबाकू-हुक्का आदि का दौर चलता रहता है।

प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ ये है कि उस समय का लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी विलासिता में डूबे हुए थे। शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी जिन पर थी वो भोग-विलास में लिप्त थे और उन्हे प्रजा की तकलीफों की कोई चिंता नही थी। गांव-गांव में गरीबी बढ़ती जा रही थी और गांव के लोग गरीब होते जा रहे थे और लखनऊ के अमीर लोग और अमीर होते जा रहे थे। इससे उनकी भोग-विलास में संलिप्तता बढ़ती जा रही थी। वेश्याओं, जुआ और अन्य असामाजिक व्यसनों में धन उड़ाया जा रहा था।

संसार में क्या हो रहा है, इसकी किसी को खबर न थी। अंग्रेजों का दखल और प्रभाव दिन-ब-दिन बढता ही जा रहा था और किसी को चिंता नही थी। आलस्य और विलासिता के कारण नियमित कर की वसूली में लापरवाही बरती जा रही थी।

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