संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए राय साहब ने मुँह पान से भरकर कहा-"तुम हमें बड़ा आदमी समझते हो। हमारे नाम बड़े हैं पर दर्शन थोड़े। गरीबों में अगर ईष्या या बैर है तो स्वार्थ के लिए या पेट के लिए। ऐसी ईर्ष्या और बैर को मैं क्षम्य समझता हूँ। हमारे मुंह की रोटी कोई छीन ले तो उसके गले में उंगली डालकर निकालना हमारा धर्म हो जाता है। अगर हम छोड़ दें, तो देवता हैं। बड़े आदमियों की ईर्ष्या और बैर केवल आनन्द के लिए है। हम इतने बड़े आदमी हो गए हैं कि हमें नीचता और कुटिलता में ही नि:स्वार्थ और परम आनन्द मिलता है।
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Explanation:
पद
मैं अपनी सब गाइ चरैहौं ।
प्रात होत बल कैं संग जैहौं, तेरे कहें न रैहौं ॥
ग्वाल-बाल गाइन के भीतर, नैंकहु डर नहिं लागत ।
आजु न सोवौं नंद-दुहाई, रैनि रहौंगौ जागत ॥
और ग्वाल सब गाइ चरैहैं , मैं घर बैठौ रैहौं ?
सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब, प्रात जान मैं दैंहौं ॥
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "पद" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "सूरसागर" नामक ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता है "सूरदास" जी।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में सूरदास जी ने बालक कृष्ण द्वारा अपनी माता यशोदा से गाय चराने जाने को लेकर किए जा रहे बाल - हठ का मनोहारी वर्णन किया है।
व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कान्हा अपनी मां यशोदा से जिद कर रहें कि मैया मैं अपनी सभी गाय चराने के लिए जाऊंगा।
कृष्ण आगे कहते हैं कि सुबह होते ही बलराम भैया के साथ गाय चराने जाऊंगा और आपके रोकने से नहीं रुकूंगा।
मुझे ग्वाल - बालों (ग्वालों के बच्चे) और गायों के साथ रहने में तनिक भी डर नहीं लगता है। यानि अगर तुम्हे लगता है कि मुझे वहां पर डर लगेगा तो ये अपने जेहन से निकाल दो।
सूरदास आगे बाल - हठ का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि कृष्ण अपनी मां से यहां तक कह बैठे कि हे! मैया मैं नन्द बाबा की कसम खाता हूं की रात - भर जागता रहूंगा यानि की सोएंगे नहीं।
बाल कृष्ण आगे अपने आपको धिक्कारते हुए कहते हैं कि और सब ग्वाल गाय चराने जाएंगे , मैं घर में बैठा रहूंगा।
सूरदास जी आगे कहते है कि इतना सब सुनने के बाद माता यशोदा कहती हैं कि मेरे लाल! अब तुम निश्चिंत होकर जाके सो जाओ। सुबह होते ही मैं तुम्हे जगा दूंगी फिर तुम गाय चराने चले जाना।
काव्यगत सौंदर्य -
प्रस्तुत पंक्ति में कवि सूरदास जी द्वारा का गाय चराने के लिए किए गए श्रीकृष्ण के बाल - हठ का मनोहारी वर्णन किया गया है।
भाषा - सरस और सुबोध ब्रज
शैली - मुक्तक
छंद - गेय पद
रस - वात्सल्य
अलंकार - अनुप्रास
गुण - माधुर्य
कठिन शब्दों के अर्थ -
जैहौं - जाऊँगा
गाइनि - गायों के
नैकहुँ - थोड़ा-भी
सोइ रहौ - सो जाओ
जान मैं दैहौं - मैं जाने देंगी