सुदर्शन जी द्वारा लिखी गई कहानी कवि की स्त्री के पात्र के नाम बताएं
Answers
Answer:
छात्रावस्था में मैं और मणिराम साथ-ही-साथ पढ़ते थे। उस समय हम एक-दूसरे पर प्राण देते थे। वे बचपन के दिन थे। जब तक एक दूसरे को देख न लेते, शान्ति न मिलती। उस समय हमें बुद्धि न थी। पीछे से प्रेम का स्थान वैर ने ले लिया था, दोनों एक दूसरे के लहू के प्यासे हो गए थे। तब हम शिक्षित हो चुके थे। एफ.ए. की परीक्षा पास करने के पश्चात् हमारे रास्ते अलग-अलग हो गए। मणिराम मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो गए। मैंने साहित्य संसार में पाँव रखा। मुझे रूपये-पैसे की परवाह न थी। पूर्वजों की संपत्ति ने इस और से निश्चिंत कर दिया था। दिन-रात कविता के रस में तल्लीन रहता। कई-कई दिन घर से बाहर न निकलता। उन दिनों मेरे सिर पर यही धुन सवार रहती थी। एक-एक पद पर घंटों खर्च हो जाते थे। अपनी रचना को देखकर मैं गर्व से झूमने लग जाता था। कभी-कभी मुझे अपनी कविता में तुलसीदास की उपमा और सूरदास के रूपकों का स्वाद आता था। जब मेरी कवितायें पत्रों में निकलने लगीं, तब मेरा कवित्व का मद उतरने लगा। मद उतर गया, पर उसका नशा न गया। वह नशा प्रख्याति, कीर्ति और यश का नशा था। थोड़े ही वर्षों में मेरा नाम हिंदी संसार में प्रसिद्ध हो गया। मैं अब कुछ काम न करता था। केवल बड़े-बड़े लोगों को पार्टियाँ दिया करता था। अब इसके बिना मुझे चैन न मिलता था। कविता में इतना मन न लगता था। पहले मेरा सारा समय इसी की भेंट होता था, पर अब वह जी-बहलावे की चीज़ हो गयी थी। परन्तु जब कभी कुछ लिखता, रंग बाँध देता था। तुच्छ से तुच्छ विषय को लेता तो उसमें भी जान डाल देता था। उधर मणिराम चिकित्सा के ग्रंथों के साथ सिर फोड़ता रहा। पांच वर्ष बाद असिस्टेंट सर्जरी की परीक्षा पास करके उसने अपनी दूकान खोल ली। परीक्षा का परिणाम निकलने के समय उसका नाम एक बार समाचार-पत्र में निकला था। इसके पश्चात् फिर कभी उसका नाम पत्रों में नहीं छपा। इधर मेरी प्रशंसा में प्रति दिन समाचार-पत्रों के पृष्ठ भरे रहते। वह दूकान पर सारा दिन बैठा रोगियों की बाट देखता रहता था। परन्तु उसका नाम कौन जानता था? लोग जाते हुए झिझकते थे। मैं उसकी और देखता तो घृणा से मुँह फेर लेता- जिस प्रकार मोटर में चढ़ा हुआ मनुष्य पैदल जानेवालों को घृणा से देखता है।
Explanation:
this is the answer
hope it helps you
please follow
Answer:
कवि की स्त्री
Explanation:
कवि की स्त्री