सुंदर वृक्ष शीर्षक पर एक कविता लिखिए
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धरती का श्रृंगार वृक्ष हैं।
प्राणवायु दे रहे सभी को,
ऐसे परम उदार वृक्ष हैं।
ईश्वर के अनुदान वृक्ष हैं,
फल-फूलों की खान वृक्ष हैं।
मूल्यवान औषधियां देते,
ऐसे दिव्य महान वृक्ष हैं।
देते शीतल छांव वृक्ष हैं,
रोकें थकते पांव वृक्ष हैं।
लाखों जीव बसेरा करते,
जैसे सुंदर गांव वृक्ष हैं।
जनजीवन के साथ वृक्ष हैं,
खुशियों की बारात वृक्ष हैं।
योगदान से इस धरती पर,
ले आते वरदान वृक्ष हैं।
जीव-जगत की भूख मिटाते,
ये सुंदर फलदार वृक्ष हैं।
जीवन का आधार वृक्ष हैं,
धरती का श्रृंगार वृक्ष हैं।
प्राणवायु दे रहे सभी को,
ऐसे परम उदार वृक्ष हैं।
ईश्वर के अनुदान वृक्ष हैं,
फल-फूलों की खान वृक्ष हैं।
मूल्यवान औषधियां देते,
ऐसे दिव्य महान वृक्ष हैं।
देते शीतल छांव वृक्ष हैं,
रोकें थकते पांव वृक्ष हैं।
लाखों जीव बसेरा करते,
जैसे सुंदर गांव वृक्ष हैं।
जनजीवन के साथ वृक्ष हैं,
खुशियों की बारात वृक्ष हैं।
योगदान से इस धरती पर,
ले आते वरदान वृक्ष हैं।
जीव-जगत की भूख मिटाते,
ये सुंदर फलदार वृक्ष हैं।
जीवन का आधार वृक्ष हैं,
धरती का श्रृंगार वृक्ष हैं।
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(1) धरती के श्रृंगार हैं पेड़,
जीवन के आधार हैं पेड़ |
पेड़ हमे छाया देते हैं
स्वय शीत गर्मी सहते हैं
बिना मुकुट के राजा हैं ये
कितने मनमोहक लगते हैं |
जंगल के परिवार पेड़ हैं,
पंछी के घर बार पेड़ हैं |
जहाँ पेड़ हैं, शीतलता हैं
शीतलता से मेघ बरसते,
सूखी धरती हरियाती हैं
ताल-तलैया सारे भरते |
धरती के उपहार पेड़ हैं,
खुशहाली के द्वार पेड़ हैं |
स्वस्थ बनाते,श्रम हर लेते
हमे फूल, फल मेवे देते,
करते हैं सम्पन्न सभी को
पर न किसी से कुछ भी लेते |
∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆
(2)कट गए कितने ही वन
कम हो गए कितने उपवन
खुली हवा हो गयी है कम
कैसे रहेंगे तुम और हम !
बंध खिड़की को खोलो तुम
वरना घुट जाएगा दम
हवा के झोंके जो न आये
कैसे रहेंगे तुम और हम !
एक पौधा तुम भी लगाओ
अपना आँगन तुम ही सजाओ
न रहेंगे जब पेड़ और पौधे
कैसे रहेंगे तुम और हम !
यह चमन तुम्हारा है
यह आँगन तुम्हारा है
महकेंगे जब यह फूल उपवन
जी उठेंगे फिर तुम और हम !
∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆
this is your answer...
जीवन के आधार हैं पेड़ |
पेड़ हमे छाया देते हैं
स्वय शीत गर्मी सहते हैं
बिना मुकुट के राजा हैं ये
कितने मनमोहक लगते हैं |
जंगल के परिवार पेड़ हैं,
पंछी के घर बार पेड़ हैं |
जहाँ पेड़ हैं, शीतलता हैं
शीतलता से मेघ बरसते,
सूखी धरती हरियाती हैं
ताल-तलैया सारे भरते |
धरती के उपहार पेड़ हैं,
खुशहाली के द्वार पेड़ हैं |
स्वस्थ बनाते,श्रम हर लेते
हमे फूल, फल मेवे देते,
करते हैं सम्पन्न सभी को
पर न किसी से कुछ भी लेते |
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(2)कट गए कितने ही वन
कम हो गए कितने उपवन
खुली हवा हो गयी है कम
कैसे रहेंगे तुम और हम !
बंध खिड़की को खोलो तुम
वरना घुट जाएगा दम
हवा के झोंके जो न आये
कैसे रहेंगे तुम और हम !
एक पौधा तुम भी लगाओ
अपना आँगन तुम ही सजाओ
न रहेंगे जब पेड़ और पौधे
कैसे रहेंगे तुम और हम !
यह चमन तुम्हारा है
यह आँगन तुम्हारा है
महकेंगे जब यह फूल उपवन
जी उठेंगे फिर तुम और हम !
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