। सौंदर्य-बोध की रक्षा किस प्रकार की जा सकती है
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जागरण संवाददाता, आगरा : 'यदि आपका मन सच्चा है तो आपका चरित्र सुंदर होगा। यदि चरित्र में सुंदरता है तो घर में सामंजस्य होगा। घर में सामंजस्य है तो देश में व्यवस्था स्थापित होगी। यह एक सराहनीय प्रयास होगा।' कन्फ्यूशियस के उक्त विचार वर्तमान में बिल्कुल सटीक बैठ रहे हैं। जिस प्रकार मनुष्य के हृदय पर प्रकृति के सौंदर्य का स्थायी प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में भी सौंदर्य बोध की अहम भूमिका है। इसके अभाव में वह निष्प्राण हो जाती है। हमारे पास एक भौतिक शरीर, मन और बुद्धि है। भावनाएं हैं और हमारा एक आध्यात्मिक पक्ष भी है और यही हमें सौंदर्य का बोध कराता है। भारतीय संस्कृति सदैव ही भौतिकता के स्थान आध्यात्मिकता को प्राथमिकता देती आई है। ऐसा माना जाता है भौतिक शरीर क्षण भंगुर तथा आत्मा अमर है।
अत: आत्म विकास के लिए जीवन में सौंदर्य बोध को अपनाना आवश्यक हो जाता है। शिक्षण संस्थाओं में नवाचार की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य छात्र-छात्राओं में सौंदर्य बोध से संबंधित भावनाओं का विकास करना है। उनके मन में समाज एवं देश के प्रति उत्तरदायित्व तथा प्रकृति के प्रति प्रेम भावना विकसित करना भी है। शिक्षा में यदि सौंदर्य आ जाता है तो बच्चों का दृष्टिकोण ही बदल जाता है। जिससे उनमें नैतिक गुणों का विकास होता है और वो विश्व बंधुत्व के भाव से युक्त हो जाते हैं। उनके मन में सांप्रदायिक सद्भाव की भावना जाग्रत हो जाती है। सौंदर्य बोध के भाव जाग्रत होने के कारण ही विद्यार्थी के मन में प्रेम, करुणा, उत्साह आदि का विकास होता है। परिणामस्वरूप वह परायों को भी अपना बना सकता है। मनुष्य को मनुष्य से जोड़ सकता है। अशांत मन को शांत कर सकता है। मन की पीड़ा को मिटाकर जीवन रस की वर्षा कर सकता है। सौंदर्य बोध के ही कारण वह ईश्वर प्रेम, राष्ट्रप्रेम व विश्वप्रेम आदि के द्वारा सारे विश्व को एक कर सकता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य छात्रों के व्यक्तिव का सर्वांगीण विकास करना, किताबी ज्ञान के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के व्यक्तिव का सकारात्मक विकास करना है। इससे समाज में बदलाव की लहर आ सकती है। आज पारंपरिक तरीकों के अलावा ऐसे नए तरीके शिक्षण में प्रयोग किए जा रहे हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को उभारने में सक्षम है। जिस तरह तकनीक के क्षेत्र में हर दिन बदलाव आ रहा है, उसे देखते हुए ऐसी शिक्षा उन्हें देना जरूरी भी है। आज शिक्षण संस्थाओं में ललित कलाओं के अंतर्गत संगीत, नृत्य, चित्रकला, नाट्य कला आदि रचनात्मक कौशलों को भी शामिल किया गया है। जिससे छात्रों को रुचि अनुसार सीखने का अवसर प्राप्त होता है। जो उनके सूक्ष्म सौंदर्य बोध को समृद्ध करते हैं।