सुंदरकांड के विशेष संदर्भ में तुलसी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए
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सुंदरकांड के संदर्भ में तुलसीदास की काव्यगत विशेषताएं...
तुलसीदास भक्ति काल की सगुम भक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं, जो रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने अपने समय में प्रचलित प्रबंध काव्य और मुक्तक का दोनों तरह की शैलियों में अपने काव्य की रचना की है। उनके कबीर की भाषा ऐसी होती थी, जो सीधे सरल और सहज रूप से पाठकों से तादाम्य स्थापित कर लेती थी, यानी उनके काव्य की भाषा क्लिष्ट संस्कृत की जगह लोकभाषा होती थी। उन्होंने अपने काव्य में अलंकारों और रसों का बड़ा ही सुंदरतम उपयोग किया है। वह रसों और अलंकारों का उपयोग करने के महारती माने जाते रहे हैं।
सुंदरकांड की इन पंक्तियों से समझते हैं...
बालधी बिसाल विकराल ज्वाल लाल मानौ,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है।
कैधों ब्योम वीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीररस वीर तरवारि सी उघारी है।
यहाँ पर तुलसी दास ने इन पंक्तियों में उत्प्रेक्षा और संदेह अलंकार का अद्भुत प्रयोग किया है। हनुमान जी की जलती हुई पूंछ इधर-उधर घूम रही है और ऐसे प्रतीत हो रही है, जैसे वह कोई काल हो। वह धर्म रूपी तलवार का प्रतिबिंब बनकर दुष्टों का संहार करने और उनका दाह करने में धर्म का प्रतीक है। उन्होंने इन पंक्तियों से धर्म द्वारा अधर्म का नाश करने का भाव प्रकट किया है।
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