सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने अनाज का भंडारण कहाँ करते थे
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सिन्धु घाटी सभ्यता (3300 ई॰पू॰ से 1700 ई॰पू॰ तक, परिपक्व काल: 2400 ई॰पू॰ से 1700 ई॰पू॰)[कृपया उद्धरण जोड़ें] विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान ,पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से, सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] यह हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
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अब तक के शोध से इतना तो सिद्ध हो चुका है कि इजिप्ट की नील घाटी से लेकर मेसोपोटामिया की टिगरिस यूफ्रेटीज़ और भारत की सिंधु घाटी जैसी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही फली-फूलीं। शायद इसलिए क्योंकि जीवन की पहली शर्त पानी है। सिंधु घाटी सभ्यता के वानस्पतिक अवशेषों के ज़रिए उस समय के लोगों के खानपान और रहन-सहन को समझने में बड़ी आसानी हुई है।
यह सिर्फ सौ साल पहले की ही बात है। उससे पहले हमारे पास अपनी सभ्यता की प्राचीनता सिद्ध करने के पुरातात्विक साक्ष्य नहीं थे। तब तक हमारे पास सिर्फ साहित्यिक साक्ष्य थे। साल 1921 में जब हड़प्पा की खुदाई में सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष मिले, तो दुनिया में सनसनी फैल गई। आगे के शोध से साबित हुआ कि मानव विकास की यात्रा में सिंधु घाटी का स्थान कितना ऊपर है।
कम ही लोग जानते हैं कि हड़प्पा में पुरातात्विक अवशेषों को पहले पहल 1829 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक सिपाही और शौकिया खोजकर्ता चार्ल्स मैस्सों ने देखा था। लेकिन वह इसकी प्राचीनता का अंदाज़ा नहीं लगा पाया। और सिन्धु घाटी के अवशेष फिर कई दशकों तक वहीं दफ़न रहे। हड़प्पा की आधिकारिक खुदाई दशकों बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई की पहल पर 1921 में शुरू हो पाई। तब के बाद से आजतक यानी पिछले सौ साल में सिंधु घाटी सभ्यता के लगभग हर पहलू को समझने की कोशिश चल रही है।
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