साधु कहते थे- “ऐसा मत कहो। यह कितना बढ़िया उपर्दशक है। जब पर मुसीबत आने को होती है तो यह अपने शरीर को सिकोड़कर भीतर कर ले गंग है। गुड़मुड़ी मारकर बैठ जाता है। चाहे जितना हिलाओ-डुलाओ। उसका शरीर भी मंग तो भीतर।" “आदमी को भी कछुए की तरह सावधान रहना चाहिए। मुसीबत में चुपच गल बैठकर भले समय को आने देना चाहिए।" शुओं पत का पीन.
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साधु कहते थे- “ऐसा मत कहो। यह कितना बढ़िया उपर्दशक है। जब पर मुसीबत आने को होती है तो यह अपने शरीर को सिकोड़कर भीतर कर ले गंग है। गुड़मुड़ी मारकर बैठ जाता है। चाहे जितना हिलाओ-डुलाओ। उसका शरीर भी मंग तो भीतर।" “आदमी को भी कछुए की तरह सावधान रहना चाहिए। मुसीबत में चुपच गल बैठकर भले समय को आने देना चाहिए।" शुओं पत का पीन.
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