साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता होती है इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए
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हे मित्र यह रहा आपका उत्तर मनुष्य अपनी निंदा सुनकर लोगों के साथ लड़ाई-झगड़ा करने लगते हैं। परन्तु जो साधुतत्व प्राप्त कर लेता है, निंदा उसमें विनयशीलता के गुण को बढ़ा देती है। निंदा सुनकर वह जान जाता है कि उसमें क्या कमियाँ या बुराइयाँ है। वह स्वयं से दुर्गुणों को निकाल बाहर कर साधुतत्व प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार उसमें विनयशीलता का गुण विद्यमान हो जाता है।
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साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता होती है इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए :
- साधु में निंदा करने से भी विनयशीलता होती है, क्योंकि साधु का स्वभाव ही निंदा को सहन करने का होता है। जो लोग साधु होते हैं वह निंदा को सहन करने की शक्ति रहते हैं। इसी कारण उनमें विनयशीलता का भाव होता है।
- विनयशीलता साधु का धर्म है जो विनयशील नही है, वह साधु नहीं हो सकता और जो निंदा को सहन नहीं कर सकता, वह भी साधु नहीं हो सकता। इसलिए निंदा को सहन करने वाला साधु स्वयं विनयशील बन जाता है।
- निंदा को सहन करना और विनयशीलता दोनो एक दूसरे के पूरक हैं।
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