Hindi, asked by tandelhitendra12, 3 months ago

साधुपदेश में किसकी लिला का वर्णन है ?​

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Answered by rahulmaurya96166
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Explanation:

भारतीय धर्म-दर्शन की स्थापना है कि परब्रह्म अपने परिकरों के साथ नित्य लीला में संलग्न रहते हैं। जीवों का उद्धार करने के सदुद्देश्य से, अवतरित हो भगवान अपनी पार्थिव लीला से विश्वोपयोगी ऐश्वर्यगुणों को प्रस्तुत करते हैं। रामऔर कृष्ण के अनन्य उपासकों ने अपने आराध्य को परब्रह्म या उसका अवतार मानकर उनकी समस्त क्रिया-क्रीड़ाओं का मुक्त कंठ से गान किया है।

राम भक्ति साहित्य में परमेश्वर राम की लीलाओं के तीन प्रकार बताए गए हैं - (1) नित्य, (2) अवतरित (3) अनुकरणात्मक।

वैष्णव भक्तों के अनुसार परब्रह्म साकेत धाम में नित्य क्रीड़ा में संलग्न है। यह लीला चिरंतन, शाश्वत और अविराम परमानंददायिनी है। इस अवतरित लीला की अति पावन भूमि अयोध्या है : साकेत की नित्य लीला अंतरंग है, अयोध्या की अवतरित बहिरंग। लीला का मूलोद्देश्य मायाबद्ध जीवों को अंतरंग में प्रवेश करा उपास्यानंद में तल्लीन कराता है। रसिक आचार्यों के मतानुसार नित्य लीला ही निर्गुण लीला है, अप्रकट लीला है। और अवतरित लीला सगुण और प्रकट लीला है। वय: दृष्टि से राम की संपूर्ण लीलाओं का बाल्यावस्था, विवाह, वन, रण, राज्याभिषेक संबंधी लीलाओं का समूह कहा जाता है। स्थान की दृष्टि से थल लीला और जल लीला तत्वानुसार तात्विकी और अतात्विकी दो भेद हैं।

लीलानायक राम परब्रह्म के साकार रूप है, परंतु एकपत्नीव्रत न रह कर दक्षिण नायक बन जाते हैं। नायिका सीता आह्लादिनी शक्ति है जो इच्छा, ज्ञान, क्रिया इन तीनो शक्तियों का समन्वय है। राम और सीता का संबंध भक्तों के अनुसार पुरुष और प्रकृति का, परब्रह्म और आह्लादिनी शक्ति का है। परिकर जीवात्मा के रूप में स्वीकृत है। राम द्वारा किए गए सारे क्रियाव्यापारों का उनके भक्त जन अनुकरण करते हैं। यह अनुकरणात्मक लीला ही इन दिनों चलित रामलीला है।

Answered by monasingla124
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