संधारित किसे कहते हैं इसका सिद्धांत समझाइए
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संधारित्र एक तरह की युक्ति है, जिसकी सहायता से किसी चालक के आकार या आयतन में किसी भी तरह का परिवर्तन किए बिना उसकी विद्युत धारा बढ़ाई जाती है।
संधारित्र में धातु की दो प्लेटें होती हैं। इन धातु की प्लेटों के बीच में कोई कुचालक डाईइलेक्ट्रिक पदार्थ भर दिया जाता है। संधारित्र की प्लेटों की दोनों प्लेटों के बीच जब विभवातंर समय के साथ बदलता हो तभी इसमें धारा का प्रवाह किया जाता है। इसलिए जब नियत डीसी विभवांतर लगाया जाता है तो स्थाई अवस्था में संधारित्र में किसी भी तरह की कोई धारा प्रवाहित नही होती।
संधारित्र का सिद्धांत...
‘किसी आवेशित चालक के निकट से पृथ्वी संबंधित अन्य दूसरे चालक को लाने पर आवेशित चालक की विद्युत धारिता बढ़ जाती है’ यही संधारित्र का सिद्धांत है।
संधारित्र की धारा इस में प्रयोग की जाने वाली प्लेटों के क्षेत्रफल को बढ़ाने पर बढ़ जाती है, और प्लेटों के बीच की दूरी कम करने पर भी संधारित्र की धारिता बढ़ाई जा सकती है। प्लेटो के बीच परावैद्युतांक का माध्यम रखने पर भी संधारित्र की धारा बढ़ाई जा सकती है
संधारित्र का उपयोग आवेश और ऊर्जा के भंडारण के लिए किया जाता है। विद्युत फिल्टरों में भी इसका उपयोग होता है।
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