सुधारकों ने किसको आधर बनाकर सुधार का समर्थन किया ।
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19वीं शताब्दी के सुधार आंदोलन केवल धर्म तक सीमित नहीं रहे अपितु इनका धर्म से ज्यादा प्रभाव सामाजिक क्षेत्र में पड़ा । भारतीय समाज में कई ऐसी मान्यतायें व प्रथायें विद्यमान थीं जिनका आधार अंधविश्वास व अज्ञान था। इनमें से कई प्रथायें अत्यंत क्रूर व अमानवीय थीं। जैसे-सती प्रथा, बाल विवाह, बाल हत्या इत्यादि। समाज गें अशिक्षा व घोर अंधविश्वास था। पूरा का पूरा सामाजिक ढांचा, अन्याय व असमानता पर आधारित था।
ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत का सामाजिक स्वरूप अपरिवर्तनशील एवं स्थिर था। गांव आत्मनिर्भर थे तथा एक संकुचित दायरे में सिमटे हुये थे। सामाजिक व्यवस्था में वर्ण एवं जाति प्रथा अत्यंत सुदृढ़ थी। सम्पूर्ण सामाजिक क्रियाकलापों का निर्धारण जाति के आधार पर ही होता था। ब्रिटिश राज की स्थापना के पश्चात, पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ, जिससे नव जागृति आयी। ब्रिटिश आधिपत्य ने भारत के खोखलेपन एवं फूट को उजागर कर दिया। इसके पश्चात्य चिंतनशील तथा बुद्धजीवी भारतीयों ने समाज की कुरीतियों एवं त्रुटियों को सार्वजनिक किया तथा उन्हें दूर करने के प्रयत्न किये। वे पश्चिमी मानवतावाद, तकंवाद, राष्ट्रवाद एवं विज्ञानवाद से गहरे प्रभावित हुये। इन बुद्धजीवियों के पाश्चात्य एवं भारतीय संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन कर इसकी कमियों की ओर ध्यान इंगित किया। पक्षपातपूर्ण अंग्रेजी व्यापारिक नीतियों के फलस्वरूप नये बिचौलियो तथा व्यापारियों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ जिसमें अंग्रेजों से सम्पर्क के कारण पाश्चात्य विचारों का प्रसार हुआ। अंग्रेजी को शिक्षा का अनिवार्य माध्यम बनाये जाने से एक ऐसे वर्ग का उदय हुआ जिसने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त कर पाश्चात्य साहित्य का अध्ययन किया तथा भारतीय समाज एवं संस्कृति की खामियों का पता लगाया। हालांकि भारत में आधुनिक ढंग की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं तथा उपन्यास इत्यादि के प्रकाशन का श्रेय अंग्रेजों को ही है।
प्रेस के विकास से वैचारिक आदान-प्रदान में तेजी आयी। 1853 के पश्चात रेलवे के विकास ने भी इस दिशा में सहयोग किया। लोगों में सामाजिक गतिशीलता आयी। ईसाई मिशनरियों ने भारतीय समाज में प्रचलित अनेक बुराइयों एवं अमानवीय प्रथाओं की भर्त्सना की फलतः इस ओर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ। सरकार के दृष्टिकोण ने भी समाज सुधार आंदोलन प्रांरभ करने की प्रेरणा दी। वे भारतीय समाज में परिवर्तन करके उसे पश्चिमी समाज के अनुकूल बनाना चाहते थे। फलतः एक ओर जहाँ उन्होंने ईसाई मिशनरियों को भारतीय संस्कृति एवं समाज की निंदा करने के लिए प्रोत्साहित किया वहीँ दूसरी ओर उन्होंने भारतीय समाज सुधारकों को भी अपना योगदान दिया।