स्वाभिमान पर 10 वाक्य लिखिए ya apne vichaar likhiye
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इन्सान जब श्रेष्ठ कर्मों तथा व्यवहार के कारण समाज में अपनी पहचान स्थापित कर लेता है तथा अपने अपने कर्मों एवं व्यवहार से समाज द्वारा सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है उस सम्मान पर कुछ अभिमान होना स्वभाविक होता है। यह समाज द्वारा प्राप्त सम्मान से इन्सान के मन में अपने प्रति जो सम्मान सहित अभिमान उत्पन्न होता है उसे ही इन्सान का स्वाभिमान कहा जाता है। स्वाभिमान अर्थात खुद पर सम्मान सहित अभिमान करना तथा इन्सान खुद पर अभिमान तभी कर सकता है जब उसके कर्म श्रेष्ठ हों तथा व्यवहार एवं आचरण भी श्रेष्ठ होना आवश्यक है। स्वाभिमान इन्सान की श्रेष्ठता से समाज में होने वाली पहचान होती है। समाज में स्वाभिमानी इंसानों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है तथा समाज में स्वाभिमानी इंसानों की पूर्ण विश्वसनीयता भी कायम होती है।
जो इन्सान समाज में अपनी सम्पत्ति एवं धन या पद के आधार पर खुद को महत्वपूर्ण समझ कर अभिमान करते हैं वास्तव में वह उनका अहंकार होता है। अभिमानी तथा स्वाभिमानी होने में बहुत अंतर होता है। स्वाभिमानी को समाज महत्वपूर्ण समझता है परन्तु अभिमानी खुद को महत्वपूर्ण समझता है। स्वाभिमानी समाज में सम्मानित माना जाता है परन्तु अभिमानी खुद को सम्मानित मान लेता है। अभिमानी इन्सान को यह समझता आवश्यक होता है कि समाज किसी की सम्पत्ति, धन या पद का सम्मान नहीं करता समाज इन्सान के कर्म, व्यवहार एवं आचरण की श्रेष्ठता का सम्मान करता है। स्वाभिमानी इन्सान सत्य से प्रेम करता है तथा अभिमानी इन्सान सत्य से दूर भागता है इसलिए जब सत्य से प्रेम होने लगे तो समझ लेना चाहिए कि वह भी स्वाभिमानी हो रहा है।