स्वामी जववेकानंद के अनुसार भारत का भजवष्य जकन पर जनभथर है
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स्वामी विवेकानंद का भारत और राष्ट्रवाद, दूसरों के प्रति घृणा नहीं फैलाता भारतीयों को बेहतर मनुष्य बनाता है
एकदम झूठे हैं विवेकानंद को हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रखर प्रवक्ता बताने के दावे. विवेकानंद न केवल यह स्वीकार करते हैं कि भारत में विभिन्न धर्मों का सहअस्तित्व है बल्कि वे यह भी कहते हैं कि ऐसा होना वांछित और उचित है।स्वामी विवेकानंद और उनका मानववाद | Swami Vivekananda and his humanism.
स्वामी विवेकानंद का भारत : आज जिस भारत में हम रह रहे हैं, उसमें धर्म और धार्मिक पहचान ने सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया है और वे सार्वजनिक और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक, कुछ धर्मों को अन्य धर्मों पर प्राथमिकता देता है। बलात्कार और अपहरण जैसे अपराधों को भी धार्मिक रंग दिया जा रहा है। कुल मिलाकर, धार्मिक पहचान, देश के सार्वजनिक जीवन के केन्द्र में आ गई है। इसमें कोई परेशानी नहीं थी अगर धर्म, धार्मिक प्रतीकों और धार्मिक पहचान के नाम पर नफरत नहीं फैलाई जा रही होती। हो इसका उलट रहा है। कुछ धार्मिक समुदायों का बहिष्करण किया जा रहा है और नफरत से उपजे अपराध बढ़ रहे हैं। लगभग हर सामाजिक और राजनैतिक घटनाक्रम को धर्म और जाति के चश्मे से देखा जाता है। राष्ट्रवाद को भी धर्म से जोड़ दिया गया है।
आज के भारत में जिस राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व है, वह समाज के एक हिस्से को दूसरे दर्जे का नागरिक मानती है और प्रजातंत्र का क्षरण कर रही है। यह विचारधारा, श्रेष्ठता और प्रभुत्व की धारणा पर आधारित है। इस विचारधारा को अधिकांश भारतीयों के लिए स्वीकार्य बनाने और उसकी श्रेष्ठता का औचित्य सिद्ध करने के लिए, श्रेष्ठतावादी अक्सर अपने एजेंडे के अनुरूप, ऐतिहासिक व्यक्तित्वों, नायकों और दार्शनिकों को उद्धत करते हैं और उन पर कब्जा जमाने की कोशिश करते हैं। ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं स्वामी विवेकानंद। जिस समय हमारा देश बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है, तब स्वामी विवेकानंद के उदार विचारों को याद करना समीचीन होगा।
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