Hindi, asked by gurijatt171, 1 year ago

स्वामी श्रद्धानंद पर निबंध | Write an Essay on Swami Shraddhanand in Hindi

Answers

Answered by chandresh126
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उत्तर:

स्वामी श्रद्धानंद उन हिंदू नेताओं में से एक थे जिन्हें हिंदू घृणास्पद परंपराओं द्वारा मार डाला गया था। उन्हें 23 दिसंबर 1926 को अब्दुल रशीद नाम के एक कट्टरपंथी ने मार डाला। हिंदुओं के मनोविज्ञान को दिशाहीन होने के बारे में एहसास हुआ कि अगर उनके नेता उन्हें मार रहे हैं, तो हिंदू नेताओं को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से हिंदू नफरतियों द्वारा मारा जा रहा है। केरल में पिछले कुछ सालों में संघ परिवार के 125 लोग मारे गए हैं। स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या 2008 में उड़ीसा में हुई थी।


Answered by mehak6911
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Answer:

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (मुंशीराम विज) (२ फरवरी, १८५६ - २३ दिसम्बर, १९२६) भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त सन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज व भारत को संगठित करने तथा १९२० के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की।

जीवन परिचय

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स्वामी श्रद्धानन्द (मुंशीराम विज) का जन्म २ फरवरी सन् १८५६ (फाल्गुन कृष्ण त्र्योदशी, विक्रम संवत् १९१३) को पंजाब प्रान्त के जालन्धर जिले के तलवान ग्राम में एक खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता,श्री नानकचन्द विज, ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शासित यूनाइटेड प्रोविन्स (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में पुलिस अधिकारी थे। उनके बचपन का नाम वृहस्पति विज और मुंशीराम विज था, किन्तु मुन्शीराम सरल होने के कारण अधिक प्रचलित हुआ।

पिता का स्थानान्तरण अलग-अलग स्थानों पर होने के कारण उनकी आरम्भिक शिक्षा अच्छी प्रकार नहीं हो सकी। लाहौर और जालंधर उनके मुख्य कार्यस्थल रहे। एक बार आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती वैदिक-धर्म के प्रचारार्थ बरेली पहुंचे। पुलिस अधिकारी नानकचन्द विज अपने पुत्र मुंशीराम विज को साथ लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का प्रवचन सुनने पहुँचे। युवावस्था तक मुंशीराम विज ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते थे। लेकिन स्वामी दयानन्द जी के तर्कों और आशीर्वाद ने मुंशीराम विज को दृढ़ ईश्वर विश्वासी तथा वैदिक धर्म का अनन्य भक्त बना दिया।

वे एक सफल वकील बने तथा काफी नाम और प्रसिद्धि प्राप्त की। आर्य समाज में वे बहुत ही सक्रिय रहते थे।

उनका विवाह श्रीमती शिवा देवी के साथ हुआ था। जब आप ३५ वर्ष के थे तभी शिवा देवी स्वर्ग सिधारीं। उस समय उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां थीं। सन् १९१७ में उन्होने सन्यास धारण कर लिया और स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से विख्यात हुए

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