स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित गुरुकुल कांगड़ी के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए
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औपनिवेशिक शासनकाल में नीति नियंता से लेकर शिक्षक तक सभी मान चुके थे कि वर्तमान समय में पश्चिमी शिक्षा पद्धति का कोई विकल्प नहीं है, विज्ञान और तकनीकी विषयों की पढ़ाई अपने भाषा में नहीं हो सकती और गुरुकुल पद्धति और आधुनिक शिक्षा का कभी संयोग नहीं हो सकता। स्वामी श्रद्धानंद ने अपने दृढ़निश्चय के माध्यम से ‘गुरुकुल कांगड़ी’ के रूप में एक ऐसा शिक्षण संस्थान खड़ा किया, जो आगे चलकर शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बन गया…
स्वामी श्रद्धानंद का नाम सामाजिक और शिक्षा सुधारकों में अग्रगण्य है। उन्होंने अपने समर्पण और सर्जनात्मकता से शिक्षा की सनातन पद्धति को फिर से प्रासंगिक बना दिया। उन्हें अपने धर्मगुरु स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों को साकार करने के लिए हरिद्वार के निकटवर्ती कांगड़ी ग्राम में समग्र वैदिक साहित्य के अध्ययनार्थ गुरुकुल खोलने का गौरव प्राप्त है। प्राचीन आदर्शों व मूल्यों पर आधारित शिक्षण संस्थान ‘गुरुकुल कांगड़ी’ ने समस्त कुधारणाओं को ध्वस्त कर दिया। औपनिवेशिक शासनकाल में नीति-नियंता से लेकर शिक्षक तक सभी मान चुके थे कि वर्तमान समय में पश्चिमी शिक्षा पद्धति का कोई विकल्प नहीं है, विज्ञान और तकनीकी विषयों की पढ़ाई अपनी भाषा में नहीं हो सकती और गुरुकुल पद्धति और आधुनिक शिक्षा का कभी संयोग नहीं हो सकता। स्वामी श्रद्धानंद ने अपने दृढ़ निश्चय के माध्यम से ‘गुरुकुल कांगड़ी’ के रूप में एक ऐसा शिक्षण संस्थान खड़ा किया, जो आगे चलकर शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बन गया।
★स्वामी श्रद्धानंद
का नाम सामाजिक और शिक्षा सुधारकों में अग्रगण्य है। उन्होंने अपने समर्पण और सर्जनात्मकता से शिक्षा की सनातन पद्धति को फिर से प्रासंगिक बना दिया। उन्हें अपने धर्मगुरु स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों को साकार करने के लिए हरिद्वार के निकटवर्ती कांगड़ी ग्राम में समग्र वैदिक साहित्य के अध्ययनार्थ गुरुकुल खोलने का गौरव प्राप्त है। प्राचीन आदर्शों व मूल्यों पर आधारित शिक्षण संस्थान ‘गुरुकुल कांगड़ी’ ने समस्त कुधारणाओं को ध्वस्त कर दिया। औपनिवेशिक शासनकाल में नीति-नियंता से लेकर शिक्षक तक सभी मान चुके थे कि वर्तमान समय में पश्चिमी शिक्षा पद्धति का कोई विकल्प नहीं है, विज्ञान और तकनीकी विषयों की पढ़ाई अपनी भाषा में नहीं हो सकती और गुरुकुल पद्धति और आधुनिक शिक्षा का कभी संयोग नहीं हो सकता। स्वामी श्रद्धानंद ने अपने दृढ़ निश्चय के माध्यम से ‘गुरुकुल कांगड़ी’ के रूप में एक ऐसा शिक्षण संस्थान खड़ा किया, जो आगे चलकर शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रमुख विकल्प बन गया। स्वामी जी का जन्म पंजाब प्रांत स्थित जालंधर जिले के तलवन नामक ग्राम में विक्रमी संवत् 1913 के फाल्गुन मास में हुआ था। उस दिन कृष्ण त्रयोदशी थी। बालक का नाम पंडित जी ने बृहस्पति रखा। हां, परिजन उन्हें प्यार से मुंशीराम के नाम से बुलाते थे। संन्यास ग्रहण के समय तक वह इसी नाम से विख्यात रहे। पिता जी पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर राजकीय सेवा में थे। अतः जल्दी-जल्दी होने वाले स्थानांतरण के कारण स्वामी जी की शिक्षा में कई प्रकार से व्यवधान पड़ा। जिन दिनों श्री नानकचंद्र जी बरेली में कार्यरत थे, उन दिनों अंग्रेजी भाषा के व्यामोहx में फंसे और नास्तिकता के भंवर में गोते लगाते मुंशीराम को स्वामी दयानंद सरस्वती जी के दर्शन करने का, उनके वेदोपदेश सुनने का, उनसे मिलकर अपनी शंकाओं का समाधान करने का सौभाग्य मिला
★गुरुकुल कांगड़ी
→→गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के माध्यम से स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने गुरुकुल शिक्षा पद्धति और मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने का एक अभिनव प्रयोग किया था। अंग्रेजी माध्यम की पाश्चात्य शिक्षा नीति के स्थान पर राष्ट्रीय विकल्प के रूप में राष्ट्रभाषा हिंदी के माध्यम से वैदिक साहित्य, भारतीय दर्शन,भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के साथ-साथ आधुनिक विषयों की उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन तथा अनुसंधान के लिए इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। इस विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य छुआछूत के भेदभाव के बिना गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत, छात्र-छात्राओं को प्राचीन एवं आधुनिक विषयों की शिक्षा देकर उनका मानसिक और शारीरिक विकास कर चरित्रवान आदर्श नागरिक बनाना है।