सेवा में तेरी माता में भेदभाव तुझ पर वह पुण्य के नाम तेरा प्रतिदिन सुन सुन सुनाऊं
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सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।
भावार्थ : राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित “हे मातृभूमि” नामक कविता की इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि कवि अपनी मातृभूमि यानि भारत भूमि का गुणगान करते हुए कहते हैं कि हे मातृभूमि! मैं अपना जीवन तन-मन-धन से तेरी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैं अपना पूरी जीवन तेरी सेवा में अर्पित करना चाहता हूँ। मैं तेरे उस पवित्र नाम का गुणगान करते हुए रोज उस नाम को सुनना चााहता हूँ और उस पवित्र नाम को दूसरों को भी सुनाना चाहता हूँ।
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हे मातृभूमि - राम प्रसाद बिस्मिल
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।
-राम प्रसाद बिस्मिल