Hindi, asked by nishasm0608, 5 days ago

स्वामी दयानंद ने ब्रह्मचर्य की महिमा पर भाषण दिया

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Answered by satishdikshit1998
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स्वामी दयानंद सरस्वती अनेक प्रदेशों में जा-जाकर आर्यसमाज आंदोलन का प्रचार कर रहे थे। लोग उनसे प्रभावित होने लगे थे। उनकी सभाओं में अपार भीड़ उमड़ती थी। स्वामीजी को सुनने के लिए लोग विभिन्न प्रांतों से पैदल चलकर, घोड़ागाड़ी अथवा बैलगाड़ी से आते थे। ऐसी ही एक सभा में स्वामीजी का व्याख्यान चल रहा था। वह ब्रह्मचर्य विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे और लोगों को इसका महत्व समझा रहे थे। वह लोगों को बता रहे थे कि ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति में न केवल शारीरिक बल्कि बौद्धिक बल की भी वृद्धि होती है।सभा में उपस्थित लोग स्वामी दयानंद सरस्वती की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। सभा समाप्त हुई तो सब उठकर निकलने लगे। स्वामीजी मंच से उतरकर जैसे ही आगे बढ़े एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया। वह अपनी बैलगाड़ी लेकर आया था। वह स्वामीजी के सम्मुख आकर कहने लगा, ‘स्वामी जी! आप ब्रह्मचर्य विषय पर बड़े-बड़े व्याख्यान देते हैं। आपकी बातें प्रभावित भी करती हैं। आप ब्रह्मचारी हैं और मैं ठहरा पारिवारिक जीवन जीने वाला व्यक्ति। ऐसे में हमारी कोई तुलना ही नहीं। फिर भी मुझे आपमें और मुझमें कोई अंतर दिखाई नहीं दे रहा।’बैलगाड़ी वाले व्यक्ति की बातें सुनकर स्वामी जी केवल मुस्करा दिए। उनसे कोई जवाब न पाकर वह व्यक्ति आगे बढ़ गया। बाहर निकल कर वह अपनी बैलगाड़ी पर बैठा और उसे हांकने लगा। लेकिन यह क्या? गाड़ी टस से मस नहीं हो रही थी। दोनों बैल भरपूर जोर लगा रहे थे, किंतु गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही थी। वह व्यक्ति परेशान हो गया। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने देखा- स्वामी जी बैलगाड़ी का पहिया पकड़े हुए हैं। उसे अपनी भूल और ब्रह्मचर्य की शक्ति का आभास हो चुका था। वह बैलगाड़ी से नीचे उतरा और स्वामी जी के चरणों पर गिर पड़ा।

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