Political Science, asked by mohanranjan2107, 8 months ago

स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय देते हुए इनका समग्र मूल्यांकन कीजिए।

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Answered by Anonymous
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Answer:

वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने मुंबई में एक [समाज]] सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था। स्वामी दयानंद जी ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि "ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है। ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। आज स्वामी दयानन्द के विचारों की समाज को नितान्त आवश्यकता है।

Answered by itzsakshii
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Explanation:

महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम 'मूलशंकर' था।

वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने मुंबई में एक [समाज]] सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे।

उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था। स्वामी दयानंद जी ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि "ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है। ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया।

उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। आज स्वामी दयानन्द के विचारों की समाज को नितान्त आवश्यकता है।

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