स्वामी विवेकानंद के बारे में टिप्पणी
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स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद की गिनती भारत के महापुरुषों में होती है । उस समय जबकि भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया ।
इस महापुरुष का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ हुआ था । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा । नरेन्द्र बचपन से ही मेधावी थे । उन्होंने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि विषयों का अध्ययन किया । नरेन्द्र ने बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।
नरेन्द्र ईश्वरीय सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे । लेकिन वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे । वे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्रह्मसमाज में गए । यहाँ उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली । फिर नरेन्द्र सत्रह वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए । परमहंस जी का नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा ।
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानन्द कोलकाता छोड़ वरादनगर के आश्रम में रहने लगे । यहाँ उन्होंने शास्त्रों और धर्मग्रंथों का अध्ययन किया । इसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े ।
सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म-सम्मेलन हो रहा था । 4 जुलाई, 1902 ई. को रात्रि के नौ बजे, 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए । परंतु उनका संदेश कि ‘ उठो जागो और तब तक चैन की साँस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाय ‘ – हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा ।
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