स्वामी विवेकानंद के विश्व धर्म की अवधारणा से क्या समझते हैं
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योग, भक्ति, कर्म और ज्ञान के इस प्रकार के समन्वय को सार्वभौमिक धर्म का अत्यन्त निकटतम आदर्श बताते हुए विवेकानंद कहते हैं कि भगवान की इच्छा से यदि सब लोगों के मन में इस ज्ञान, योग, भक्ति और कर्म का प्रत्येक भाव ही पूर्ण मात्रा में और साथ ही समभाव से विद्यमान रहे, तो मेरे मत से मानव का सर्वश्रेष्ठ आदर्श यही होगा।
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